Book Title: Biswi Sadi ki Ek Jainetar jain Vibhuti
Author(s): K L Jain
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ बीसवीं सदी को एक जेनेतर जैन विभूति : कुँवर दिग्विजय सिंह डॉ० के० एल० जैन संस्कृत महाविद्यालय रायपुर, म०प्र० जैनेतर विद्वानों का जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में योगदान भगवान् महावीर के युग से जैन संस्कृति का इतिहास बताता है कि जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में जैनेतर धर्मावलम्बियों ने बहुमुखी योगदान किया है। महावीर के प्रथम गणघर इन्द्रभूति गौतम प्रारम्भ में स्वयं एक वैदिक विद्वान् थे। उनके अन्य गणघर भी जैनेतर विद्वान् ही थे। हमारी द्वादशांगी इन्हीं गणधरों की देन है। यह अचरज की बात है कि महावीर के गणघरों में एक भी पापित्य नहीं था। उत्तरवर्तो सदियों में हमें समन्तभद्र, पूज्यपाद, पात्रकेसरि, अकलंक, विद्यानन्द, हरिभद्रसूरि, आदि पुराणकार जिनसेन, कुन्दकुन्द के टोकाकार अमृतचन्द्र एवं अन्य आचार्यों के नाम मिलते हैं। उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में भी हमें वर्णी-बन्धु, स्वामी कर्मानन्द और कुंवर दिग्विजय सिंह की गाथाएं मिलती है। पूर्व के साथ पश्चिम के भी डा० हर्मन याकोबी, शूबिंग, ऐल्सडोर्फ, डा० चन्द्रभाल त्रिपाठी, डा० नाकामुरा और यनो, अर्नेस्ट वेंडर, मैडम कोलेकैले, प्रो० डैलू, डा० ए० एल० वाशम आदि विद्वानों के नाम सुज्ञात हैं। महावीर काल से लेकर अबतक उपरोक्त और अन्य सभी जैनेतर जैन मान्यताओं की तर्कभिता, सामयिक उपयोगिता एवं व्यापकता से प्रभावित हए। अनेकों ने जैनधर्म ग्रहण कर उसके प्रसार और अध्ययन में योगदान किया। अनेक अपने पन्थ में रहकर ही जैन विद्याओं के प्रकाशन एवं सम्वर्धन में योगदान कर रहे हैं। बीसवीं सदी के प्रारम्भ के प्रमुख जन-संस्कृति उन्नायक जैनधर्म से प्रभावित होकर जैन ही बन गये थे। इनमें से वर्णी-बन्धुओं-आ० गणेण वर्णी, आ० भगीरथ वर्णी को कौन नहीं जानता ? उन्होंने जैन एवं जनेतर समाज को क उत्थान की सरिता में निमिज्जित कर सत्पथ की ओर उन्मुख कराया। इस लेख में हम ऐसी ही एक अन्य विभूति का परिचय दे रहे हैं जो जैन जगत में आज प्रायः अज्ञात है, पर जिसने इस सदी के लगभग तीन प्रारम्भिक दशकों में सारे उत्तर भारत में जैनधर्म की दुन्दुभि बजाई थी एवं आर्यसमाज के आरोपों का सप्रमाण उत्तर देकर अनेक क्षेत्रों में जैनधर्म की प्रतिष्ठा बढ़ाई थी। इस विभूति का नाम है : ब्र० कुंवर दिग्विजय सिंह । जन्म एवं शिक्षा कवर दिग्विजय सिंह का जन्म मंगलवार, ५ अगस्त १८८५ को वीधूपुर (जिला इटावा, उ० प्र०) में हुआ था। उनके पिता ठाकूर भगत सिंह जी अपने गाँव के रईस एवं जमींदार थे। उस समय कुंवर साहब के चाचा ठाकूर रघुवीर सिंह महाराजा बीकानेर के प्रधानमन्त्री थे। वे क्षत्रिय वर्ण के अग्निकुल के भदौरिया वंश को कुल्हैया शाखा में उत्पन्न हुए थे। उन दिनों इनका परिवार धन-धान्य-सम्पन्न, विद्यावान एवं राजसम्मान आदि से प्रतिष्ठित था। हमारे मित्र नन्दलाल ने इनके गांव का पर्यटन किया है । कुंवर परिवार की गढ़ी आज भी मौजूद है पर वोधूपुरा गांव ने कोई विशेष प्रगति की हो, ऐसा नहीं लगता । कुंवर साहब दो भाई थे। आपके अनेक प्रपौत्र आज भी इटावा, दिल्ली एवं जयपुर में रहते हैं । आपके एक प्रपौत्र ने दिल्ली में 'भादोरिया उद्योग' नामक एक ख्यातिप्राप्त संस्थान स्थापित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5