Book Title: Bikhre Sutro ko Jodne ki Kala Swadhyaya Author(s): Uday Jain Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 1
________________ बिखरे सूत्रों को जोड़ने की कला - स्वाध्याय मानवीय सभ्यता के इतिहास में भारत अपनी दो देन के लिए प्रसिद्ध - एटम और अहिंसा । इसलिये यह कहना सही नहीं है कि आधुनिक विज्ञान की, प्रयोगात्मक विज्ञान की परम्परा का प्रचलन पश्चिम से प्रारम्भ हुआ । पश्चिम में विज्ञान की परम्परा कोई ४०० वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है जबकि भारत में वैज्ञानिक और आध्यात्मिक चिन्तन की परम्परा हजारों साल पुरानी है । जैन दर्शन में अणु-परमाणु और पुद्गल का जितनी सूक्ष्मता से विश्लेषण हुआ है, उतनी सूक्ष्मता से अध्ययन और कहीं नहीं हुआ है । वस्तुतः एटम और अहिंसा भारत और हिन्दू जैन जीवन दर्शन की देन है - जिसके सूत्र इतिहास में बिखरे पड़े हैं और इतिहास के बिखरे सूत्र समेटने का भगीरथ कार्य 'स्वाध्याय' के बिना संभव नहीं है । आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. का पूरा जोर 'स्वाध्याय' पर था, वह सम्भवतः इसलिए कि 'स्व' का अध्ययन, 'स्वयं' का अध्ययन, 'स्वयं' की 'पहिचान' आदि स्थापित करना हो तो उसके लिए स्वाध्याय ही एक मात्र साधन है, जिसके सहारे न केवल हम इतिहास के बिखरे सूत्रों को ही समेट सकते हैं, वरन् हिन्दू और जैन धर्म की विश्व को जो देन रही है - मानवीय सभ्यता को जो देन रही है, उसका मूल्यांकन कर सकते हैं । उपनिषद् के ऋषियों ने गाया है "असतो मा सद् गमयः, तमसो मा ज्योतिर्गमयः, Jain Educationa International प्रो० उदय जैन मृत्योर्मा अमृतम्: गमयः । " इससे अधिक मनुष्य की सभ्यता का इतिहास और क्या हो सकता है ? मानवीय संवेदना और चेतना का बड़ा ऊँचा भविष्य क्या हो सकता है ? जिसमें कहा गया है कि हम असत्य से सत्य की प्रोर, अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरता की ओर बढ़ें। और यही मृत्यु से अमरता का पाठ जैन दर्शन हमें सिखाता है । जीवन की अनन्त यात्रा के क्रम में यह मनुष्य जीवन बड़ा बहुमूल्य और गुणवान है । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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