Book Title: Bihar me Jain Dharm Author(s): Upendra Thakur Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 1
________________ बिहारमें जैनधर्म डा० उपेन्द्र ठाकुर, बोधगया यह ठीक ही कहा गया है कि जैनधर्म कभी किसी संकुचित दृष्टिका शिकार नहीं बना और उसका दृष्टिकोणशब्दके सही अर्थमें उदार और उदात्त रहा है । साथ ही, जैनियोंने देशके किसी एक भाग तक ही अपने कार्यकलापोंको सीमित नहीं रखा, प्रायः देशके प्रत्येक कोने में वे फैले हए हैं। उनके अंतिम तीर्थकर यदि उत्तर बिहार (विदेह अथवा मिथिला) में उत्पन्न हुए थे, तो उन्हें मगध (दक्षिण बिहार) में निर्वाण प्राप्ति हुआ, जो मुख्यतया उनका कार्य-क्षेत्र भी रहा था। उनके पहले पार्श्वनाथ यद्यपि वाराणसीमें उत्पन्न हुए थे फिर भी तपस्या करने वह मगधके सम्मेद शिखर (पार्श्वनाथ पर्वत) पर ही आये। उनसे भी पूर्वके तीर्थकर नेमिनाथने भारतके पश्चिमी क्षेत्र काठियावाड़को अपनी तपस्या, उपदेश एवं निर्वाणका क्षेत्र बनाया था। प्रथम तीर्थंकर आदिनाथने अयोध्यामें जन्म लेकर भी कैलाश पर्वत पर तपस्या की। तात्पर्य यह है कि उत्तरमें हिमालयसे लेकर पूर्वमें मगध और पश्चिममें काठियावाड़ तक इन जैन मुनियों एवं . आचार्योंका कार्यक्षेत्र था जो इनकी निरन्तर साधना एवं निर्वाणसे दिगदिगन्तमें मुखर हो चुका था [१] बौद्धोंकी भांति जैनधर्मके इतिहासमें भी बिहारकी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अन्य क्षेत्रोंकी अपेक्षा बौद्ध धर्म तथा जैनधर्मके विकास एवं प्रचारमे बिहारका अधिक योगदान रहा है । भगवान् महावीरका जन्म वैशालीमें हुआ था जहाँ उन्होंने बाल्यावस्था तथा जीवनका प्रारम्भिक समय व्यतीत किया था। इस तरह वैशालीकी महत्ता जैनियोंके लिए वही है जो सारनाथ तथा अन्य बौद्ध स्थानोंको चीन, वर्मा तथा अन्य बौद्ध देशोंके लिए है। किन्तु, सबसे दुःखद बात तो यह है कि ब्राह्मण-ग्रन्थोंमें वैशाली एवं उससे सभी कार्य-कलापोंकी घोर उपेक्षा की गयी है। ७ वीं सदीमें जब ह्वेनसांगने इस भूभागकी यात्रा की तो एक ओर हिंदू देवी-देवताओंके मन्दिर मिले, वहीं दूसरी ओर अधिकांश बौद्ध-विहारके मात्र भग्नावशेष । कुछ जैन मंदिर अवश्य थे जहाँ काफी संख्यामें निर्ग्रन्थ मुनि वास कर रहे थे। किन्तु, पटना जिला-स्थित पावापुरी (जहाँ महावीरको निर्वाण प्राप्त हआ था) तथा चम्पापुरी (भागलपुर) की भाँति जैनियोंकी दृष्टिमें भी इस स्थानका वह महत्व अभी हाल तक नहीं था और न ही इस भूभाग किसीने जैन अवशेषोंकी खोजका प्रयास किया। कुछ वर्ष पूर्व इस ओर विद्वानोंका ध्यान आकर्षित हुआ है जिसके फलस्वरूप एकबार नये सिरेसे इसके सम्बन्धमें गवेषणा-कार्य प्रारम्भ हए हैं।' भगवान् महावीरके पिता वैशालीके नागरिक थे और माता विदेह अथवा मिथिलाकी कन्या । महावीरके ओजस्वी व्यक्तित्व एवं उपदेशोंके फलस्वरूप वैशाली उस समय जैनमतका सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र बन गयी थी जहाँ देशके कोने-कोनेसे श्रमणमनि आकर साधना करते थे। बारहवें तीर्थकर वसुपूज्यको चम्पापुर (भागलपुर) में निर्वाण प्राप्त हुआ था और इक्सीसवें तीर्थंकर नेमिनाथका जन्म मिथिलामें ही हुआ था। स्वयं महावीरने भी वैशालीमें बारह तथा मिथिलामें ६ वर्षाऋतुएँ बितायी थीं। १. विस्तृत विवरणके लिये देखिये, लेखककी पुस्तक "स्टडीज इन जैनिज्म एण्ड बुद्धिज्म इन मिथिला', अध्याय ३। - २८१ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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