Book Title: Bhimchand Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ कविविल्हरचित--भीमछंद (अणहिलपुर) -सं. भंवरलाल नाहया यह भीमछंद विल्ह कविकी रचना है, जो अणहिल पाटण के रहनेवाले थे। आबृ विमलवसहीके आगे जो छोटा मंदिर है, वह इन्हीं के द्वारा निर्मापित होना चाहिए । भीमको विमलकुलितिलक लिखा है। विमल जो पोरवाल थे, विमल का अर्थ अगर विमलमंत्रीसे न लेकर शब्दार्थ करें तो ये किस ज्ञाति-वंशके थे? हमें ६० वर्ष पूर्व उ.सुखसागरजी महाराजसे वाडी पार्श्वनाथ मंदिरके शिलालेख का फोटो मिला है। वह इन्हीं के द्वारा निर्मापित होना चाहिए, शिलालेख का फोटो पास में यहां ही है, यदि प्रकाशित हो तो भीम के वंशजों के नाम देखे जा सकते हैं । भीम सम्बन्धी कवि देपालकृत रास श्रीधुरंधर विजयजी म.सा. ने प्रकाशित किया है। भीम केसवा शाह लिखा है। दादाश्री जिनकुशलसूरिजीका पट्टाभिषेक पाटणमें १३७७ में हुआ था, उस समय वहां भयंकर दुष्काल था, उस समय अकाल पीडित के लिए प्रचुर अर्थव्यय किया था। वाडी पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा १६५२ के बाद श्रीजिनचंद्रसूरिजीके लाहोर से लोटते पंचनदी साधन करने के पश्चात् उन्हीं के आज्ञानुवर्ती मुनियों द्वारा पाटणमें की गई कविविल्हरचित-भीमछंद - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - नउं। अवरराय जय मगउं सोलह, तोय न पहुंचइ भीम तंबोलह ॥१॥ तरे पट्टणह नयरिए कोइ सुणियइ, जरे केसवा साह कर भीम भणियइ । तरे दानरूपीहि तदउलेइ खग्गो, जरे जेणि सतहत्तरउणिहि भग्गउ ॥२॥ भरे तिणि दिणि माइ छंडे वि बाला तरे तिणि दिणिअन्न दुत्थीय काला । तरे तिणि दिणि रखयउ लोक भगउ, जरे ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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