Book Title: Bhavanasar Author(s): Lalchand Jain Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 2
________________ ग्रन्थों, पुराणों और कोषों के उद्धरण ससन्दर्भ दिये गये हैं और उनकी हिन्दी भाषा में विस्तृत व्याख्या करके विषय को भलीभांति समझाने का प्रयास किया गया है। (3) इसकी तीसरी विशेषता है कि मूल गाथाओं की हिन्दी व्याख्या और विवेचन के अलावा सन् 1917 में कुमार देवेन्द्र प्रसाद, आरा द्वारा प्रकाशित शरतचन्द्र घोषाल की अंग्रेजी भाषा में ज्यों की त्यों व्याख्या दे दी गई है। इससे इस हिन्दी व्याख्या की उपयोगिता और भी अधिक बढ़ गई है, क्योंकि अब इस 'भावनासार' नामक द्रव्यसंग्रह की टीका का अध्ययन हिन्दी और अहिन्दी दोनों प्रकार के भाषा-भाषी समान रूप से कर सकते हैं। सभी लोग द्रव्यसंग्रह के मर्म को समझ सकें इसी लोककल्याण की भावना से अंग्रेजी अनुवाद और व्याख्या का संकलन कर दिया गया प्रतीत होता है। (4) ग्रन्थ की गाथाओं की व्याख्या करने की भाषा-शैली इतनी सरल, सुबोध और स्पष्ट है कि सामान्यजन भी इसका स्वाध्याय कर सकते हैं / इसके अध्ययन से ऐसा प्रतीत नहीं होता कि यह हिन्दी अनुवाद अन्य भाषा से अहिन्दी भाषाभाषी द्वारा किया गया है। इससे आचार्यरत्न श्री का जैन और जैनेतर दार्शनिक ग्रन्थों के गूढ़ अध्येता और गम्भीर, अगाध ज्ञानी और महान दार्शनिक होना सिद्ध होता है। (5) प्रस्तुत भावनासार की हिन्दी टीका शोध-प्रज्ञों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इसके अध्ययन और मनन करने से ही अध्ययनकर्ता जैन दर्शन का ही नहीं बल्कि समस्त भारतीय दर्शन का अच्छा जानकार हो सकता है, क्योंकि इसमें प्रसंगवशाद जैन दर्शन के अनेकान्त, स्याद्वाद, सर्वज्ञवाद, तत्त्व मीमांसा, आचार मीमांसा आदि की व्याख्या अन्य भारतीय दर्शनों के सिद्धांतों के साथ निष्पक्ष दृष्टि से तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज ने द्रव्यसंग्रह की कन्नड़ टीका 'भावनासार' का हिन्दी अनुवाद करके यदि एक ओर श्री पुट्टच्या स्वामी के परिश्रम को सार्थक बनाया है तो दूसरी ओर उनके विचारों का अध्ययन करने वाले समस्त इच्छुकजनों को सौभाग्यशाली बनाया है। यदि इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद न होता तो सभी हिंदी भाषा-भाषी इसके लाभ से वंचित रह जाते / 'द्रव्य संग्रह' की इससे अधिक उपयोगी और उत्तम कोटि की टीका आज तक देखने में नहीं आई है / आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी का प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद हर दृष्टि से शतशः अभिनन्दनीय है। R सृजन-संकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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