Book Title: Bhartiya Darshanik Chintan me Nihit Anekant
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_5_001688.pdf
View full book text
________________ 102 का निर्देश उपाध्याय यशोविजय जी ने अध्यात्मोपनिषद् (1/45-49) में किया है, हम प्रस्तुत आलेख का उपसंहार उन्हीं के शब्दों में करेंगे चित्रमेकमनेकं च रूपं प्रामाणिक वदन् / योगोवैशेषिको वापि नानेकांतं प्रतिक्षिपेत् / / विज्ञानस्यमैकाकारं नानाकारं करंबितम् / इच्छंस्तथागतः प्राज्ञो नानेकांतं प्रतिक्षिपेत् / / जातिवाक्यात्मकं वस्तु वदन्ननुभवोचितम् / भाट्टो वा मुरारिर्वा नानेकांतं प्रतिक्षिपेत् / / अबद्धं परमार्थेन बद्धं च व्यवहारतः। ब्रुवाणो ब्रह्मवेदान्ती नानेकांतं प्रतिक्षिपेत्।। ब्रुवाणो भिन्न-भिन्नार्थन् नयभेद व्यपेक्षया / प्रतिक्षिपेयुनों वेदाः स्याद्वादं सार्वतान्त्रिकं / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org