Book Title: Bharatiya Sanskruti me Sant ka Mahattva
Author(s): Kusumvati Sadhviji
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 2
________________ ५६६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय का गरल क्यों न पान करना पड़े, वह किसी से भी अपने पर दया करने की प्रार्थना न करेगा, ज्यों-ज्यों दुःख अपमान, तिरस्कार और घृणा की लपटें उसे झुलसाने के लिये अग्रसर होंगी, त्यों त्यों उसका जीवन वज्र के समान होता जायेगा. क्या मजाल कि उसका मन पिघल जाए, सत्त्व विचलित हो जाए. वास्तव में सन्त स्वयं के लिए हिमालय की चट्टान के समान अडिग होता है. किन्तु दूसरों के प्रति व्यवहार करने में कुसुम के समान कोमल हो जाता है : 'वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि' सन्त का कोमल हृदय दूसरों के दुःख के भार को वहन करने में सर्वथा असमर्थ होता है. सन्तों के प्रभाव के कतिपय उदाहरण मानव के हृदय में रोग के जन्तु भर जाते हैं, तो उसे डाक्टर के पास जाकर इंजेक्शन लेना पड़ता है. सन्त भी एक डाक्टर हैं अतः मानव के विकार एवं पाप के जन्तुओं को दूर करने के लिये उनके पास जाना चाहिए, उनके सम्पर्क से विषाक्त मानसिक वातावरण का नाश हो जाता है. १. समर्थ गुरु रामदास और शिवाजी : रामदास सचमुच समर्थ रामदास ही थे. बचपन में उसका विवाह हो रहा था, और वे लग्नमण्डप में बैठे हुए थे, तब उन्होंने जैसे ही 'सावधान' शब्द सुना, वे सावधान हो गये और ऐसे सावधान हुए कि १२ वर्ष तक उनका पता नहीं लगा. फिर वे संन्यासी हो गये, और घर-घर भिक्षा मांगने लगे.. स्वामी रामदास एक पहुँचे हुए सन्त थे. उनका प्रभाव चारों ओर बिजली के समान फैल गया. उस प्रभाव से महाराज शिवाजी भी प्रभावित हुए. शिवाजी ने उन्हें अपना गुरु माना. जब अपने गुरु को भिक्षा मांगते हुए देखा तो सोचा'मेरे गुरु और भिक्षा मांगे, क्या मैं अकेला ही उनकी आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं कर सकता हूँ ?' उन्होंने तत्काल पत्र लिखा, ओर अपने नौकर को देते हुए कहा-'जब स्वामीजी आवें तो उनकी झोली में यह चिट्ठी डाल देना. यथासमय भिक्षार्थ रामदास आये तो नौकर ने बह पत्र उनकी झोली में डाल दिया. उसमें लिखा था--'महाराज, मैं अपना सारा राज्य आपको सौंपता हूँ. आप भिक्षावृत्ति त्याग दें.' सन्त रामदास ने उसे पढ़ा और चुपचाप वहाँ से चल दिये. दूसरे दिन वे शिवाजी के पास आये और बोले- 'बेटा, तुमने अपना सारा राज्य मुझे दे दिया है. बोलो, अब तुम क्या करोगे ?' शिवाजी ने कहा- 'गुरुदेव, जो आपकी आज्ञा हो. सेवा में सदा तैयार हूँ !' रामदास ने कहा- 'यह मेरी झोली उठाओ और मेरे साथ भीख मांगने चलो.' शिवाजी बड़े विस्मित हुए पर बचनबद्ध थे. उन्होंने झोली उठा ली और रामदास के साथ भिक्षा माँगने चल पड़े. गुरु ने उन्हें सारे गाँव में अटन कराया और अन्त में नदी के किनारे आकर सबके साथ भोजन कराया. भोजनानन्तर गुरु ने शिवाजी से कहा-'बेटा, तुमने सारा राज्य मुझे दे दिया है, लेकिन अब मैं यह राज्य तुम्हें वापस सौंपता हूँ. तुम राज-काज मेरा समझकर करना और यह मेरा भगवा वस्त्र भी साथ रखना, जिससे तुम्हें इस राज्य के प्रति अनुरक्ति न हो.' महाराष्ट्र में आज भी उस भगवे झण्डे का महत्त्व कायम है. शिवाजी ने गुरु के कथनानुसार ही राज्य चलाया, और उसके मालिक नहीं, ट्रस्टी बनकर काम किया. रामदास का शिवाजी पर ऐसा प्रभाव पड़ा. २. श्रेणिक और अनाथी मुनि : मगधसम्राट् पर अनाथी मुनि का प्रभाव कैसा और किस प्रकार पड़ा, इसका वर्णन भगवान् महावीर ने उत्तराध्ययनसूत्र के बीसवें अध्ययन में किया है. राजा श्रेणिक मण्डिकुक्ष नामक उद्यान में क्रीड़ार्थ गया. वहाँ एक वृक्ष के नीचे ध्यानमुद्रा में स्थित अनाथी मुनि को देखा. Jain ELEZ Personment-oys Jaimemorary.org

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