Book Title: Bharatiya Sanskruti ke Pratiko me Kamal aur Ashwa Author(s): Sudha Agarwal Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 7
________________ उनकी आकृतियोंको खिलौनोंमें उतारा। जैसोरसे प्राप्त एक फलक पर पुर्तगाली सिपाही घोड़ेपर सवार है। उसके वायें हाथमें घोड़ेकी रास और दाहिनेमें चाबुक है। प्राचीन मांगलिक प्रतीक मूत्तियोंकी रूप कल्पनामें अश्व भी स्वीकृत था। __ अश्वमेधकी परम्परा इस देशमें अति प्राचीन है ऐतिहासिक कालमें भी पुष्पमित्र शुङ्ग, समुद्रगुप्त, कुमारगुप्त आदिने अश्वमेध किये / समद्रगप्तके अश्वमेध-यज्ञकी प्रतिकृति भी मिल गयी हैं जो लखनऊके संग्रहालयमें रखी है। भारतवर्षका दिग्विजय कर समुद्रगुप्तने अश्वमेध-यज्ञ किया था। उसने अश्वमेध स्मारक दिनार (सोनेका सिक्का) चलाया। दक्षिणके अनेक राजाओंने भी अश्वमेध किये। कन्नौजके गहड़वाल राजा जयचन्द्र के भी अश्वयज्ञका उल्लेख हुआ है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्यके बेटे कुमारगुप्त प्रथमने चालीस वर्षों तक राज्य किया और सोनेका सिक्का चलाया / सिक्केमें राजा घोड़े पर सवार हैं / भारतके बीसवीं सदीके ताम्बेके पैसे पर पटमें भी अश्वाकृति थी। आहत मद्राओं पर चिह्नोंके दूसरे वर्गमें चार महा आजानेय पशुओंका चित्र है। चतुष्पाद पंक्तिका प्रतीक बौद्धधर्मके उदयसे बहत पहले ही प्रचलित हो चुका था। इस प्रकार कमल और अश्वका भारतीय संस्कृतिके मांगलिक प्रतीकोंमें मुख्य स्थान था। COM maa Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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