Book Title: Bharatiya Sanskruti ke Do Pramukh Maha Ghatako ka Sambandh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf

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Page 16
________________ १६ (३) शेरगाथान्तर्गत बौद्ध परम्परा की सूची १. ब्रह्म २. प्रजापति ३. कावशैय ४. यज्ञवचाराजस्तम्बायन ५. कुश्रि ६. वात्स्य ७. शाण्डिल्य ८. वामकशायन ९. माहित्थि १०. कौत्स ११. माण्डण्य १२. माण्डुकायनी १३. सांजीवी १४. आगे की परम्परा समान। इस प्रकार हम देखते हैं कि उपरोक्त सूचियों के अवलोकन से एक बात बहुत स्पष्ट हो जाती है कि इन तीनों ही सूचियों में कुछ नाम समान रूप से पाये जाते हैं। विशेष रूप से औपनिषदिक सूचियों के कुछ नाम ऋषिभाषित की सूची में और कुछ नाम थेरगाथा की सूची में पाये जाते हैं। मात्र यही नहीं ऋषिभाषित की सूची के कुछ नाम थेरगाथा की सूची के साथ-साथ सत्तनिपात आदि बौद्ध पिटक साहित्य के ग्रन्थों में भी पाये जाते हैं। सामान्यतया यहाँ यह प्रश्न उपस्थित किया जा सकता है कि एक नाम के कई व्यक्ति विभिन्न कालों में भी हो सकते हैं और एक काल में भी हो सकते हैं ? किन्तु जब हम इन सूचियों में प्रस्तुत कुछ व्यक्तित्वों का गम्भीरता से अध्ययन करते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि इन सूचियों में जो नाम समान रूप से मिलते हैं वे भिन्न व्यक्तियों के सचक नहीं हैं, अपितु इससे भिन्न यही सिद्ध होता है कि वे एक ही व्यक्ति के नाम हैं। उदाहरण के रूप में - याज्ञवल्क्य का नाम शतपथब्राह्मण, सांख्यायन आरण्यक, बृहदारण्यकोपनिषद्, महाभारत के सभापर्व, वनपर्व एवं सांख्यपर्व में मिलता है तो दूसरी ओर वह हमें ऋषिभाषित की सूची में भी मिलता है। जब हम ऋषिभाषित प्रस्तुत याज्ञवल्क्य के उपदेश की बृहदारण्यकोपनिषद में उनके उपदेश से तुलना करते हैं तो स्पष्ट रूप से लगता है कि वे दोनों ही स्थलों पर वित्तैषणा, पत्रैषणा और लोकैषणा के त्याग की बात करते हैं। दोनों परम्पराओं में उनके उपदेश की इस समानता के आधार पर उन्हें दो भिन्न व्यक्ति नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार जब हम थेरगाथा के गोशाल थेर, ऋषिभाषित के मंखलीपुत्र (गोशालक) तथा महाभारत के मंकी (मंखी) ऋषि के उपदेशों की तुलना करते हैं तो तीनों ही स्थानों पर उनकी प्रमुख मान्यता नियतिवाद के सम्पोषक तत्त्व मिल जाते हैं। अत: हम इन तीनों को अलग-अलग व्यक्ति नहीं मान सकते। इसी प्रकार जब हम ऋषिभाषित के वर्धमान और थेरगाथा के वर्धमान थेर की तुलना करते हैं तो हम पाते हैं कि थेरगाथा की अट्ठकथा में वर्धमान थेर को वैशाली गणराज्य के लिच्छवी वंश का राजकुमार बताया गया है, अत: वे वर्धमान महावीर ही हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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