Book Title: Bhagava Mahavir ka Tattvavad Author(s): Nathmalmuni Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf View full book textPage 1
________________ Mor-o----0-0-0------------------------0-0--2 0 -0--0 - मुनिश्री नथमल [विश्रुत विद्वान एवं प्रसिद्ध लेखक] -0 ०००००००००००० ०००००००००००० -0--0--0--0--0 तत्त्व क्या है-इस प्रश्न पर हजारों वर्षों से चिन्तन चला आया है। यही चिन्तन 'दर्शन' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जैन तत्त्वविद्या के सर्वांगीण तर्कपुरस्सर स्वरूप का संक्षिप्त एवं सरल विश्लेषण यहाँ प्रस्तुत है-प्रसिद्ध दार्श६ निक मुनिश्री नथमल जी द्वारा।। -0 भगवान महावीर का तत्त्ववाद SXE Sa.. TY ... . LITTITITILY इस जगत् में जो है वह तत्त्व है, जो नहीं है वह तत्त्व नहीं है। होना ही तत्त्व है, नहीं होना तत्त्व नहीं है । तत्त्व का अर्थ है—होना । विश्व के सभी दार्शनिकों और तत्त्ववेत्ताओं ने अस्तित्व पर विचार किया। उन्होंने न केवल उस पर विचार किया, उसका वर्गीकरण भी किया। दर्शन का मुख्य कार्य है-तत्त्वों का वर्गीकरण । नैयायिक, वैशेषिक, मीमांसा और अद्वैत-ये मुख्य वैदिक दर्शन हैं। नैयायिक सौलह तत्त्व मानते हैं । वैशेषिक के अनुसार तत्त्व छह हैं । मीमांसा कर्म-प्रधान दर्शन है। उसका तात्त्विक वर्गीकरण बहुत सूक्ष्म नहीं है । अद्वैत के अनुसार पारमार्थिक तत्त्व एक परम ब्रह्म है। सांख्य प्राचीनकाल में श्रमण-दर्शन था और वर्तमान में वैदिक दर्शन में विलीन है । उसके अनुसार तत्त्व पच्चीस है । चार्वाक दर्शन के अनुसार तत्त्व चार हैं । मालुंकापुत्र भगवान बुद्ध का शिष्य था। उसने बुद्ध से पूछा-मरने के बाद क्या होता है ? आत्मा है या नहीं ? यह विश्व सान्त है या अनन्त ? बुद्ध ने कहा-यह जानकर तुम्हें क्या करना है ? . उसने कहा-क्या करना है, यह जानना चाहते हैं ? मुझे आप उनका उत्तर दें और यदि उत्तर नहीं देते हैं तो मैं आपके दर्शन को छोड़ दूसरे दर्शन में जाने की बात सोचूं । या तो आप कहें कि मैं इन विषयों को नहीं जानता और यदि जानते हैं तो मुझे उत्तर दें । मैं सत्य को जानने के लिए आपके शासन में दीक्षित हुआ था। किन्तु मुझे मेरी जिज्ञासा का उत्तर नहीं मिल रहा है। बुद्ध ने कहा-मैंने कब कहा था कि मैं सब प्रश्नों के उत्तर दूंगा और तुम मेरे मार्ग में चले आओ। मालुंकापुत्र बोला-आपने कहा तो नहीं था। बुद्ध ने कहा-फिर, तुम मुझे आँखें क्यों दिखा रहे हो ? देखो, एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति ने बाण मारा । वह बाण से विध गया । अब कोई व्यक्ति आता है, वैद्य आता है और कहता है बाण को निकालें और घाव को ठीक करें। किन्तु वह व्यक्ति कहता है कि मैं तब तक बाण नहीं निकलवाऊँगा जब तक कि यह पता न लग लाये कि बाण किसने फेंका है ? फेंकने वाला कितना लम्बा-चौड़ा है ? वह कितना शक्तिशाली है ? वह किस वर्ण का है ? बाण क्यों फेंका गया ? किस धनुष्य से फेंका गया? वह धनुष्य कैसा है ? तूणीर कैसा है ? प्रत्यंचा कैसी है ? ये सारी बातें मुझे जब तक ज्ञात नहीं हो जाती, तब तक मैं इस बाण को नहीं निकलवाऊँगा । बोलो, इसका अर्थ क्या होगा? मालुंकापुत्र बोला-वह मर जाएगा। बाण के निकलने से पहले ही मर जाएगा। वह जीवित नहीं रह सकेगा। DNA 360 00000 Daineducation.intomational -For-Privatsapersonantse-OribePage Navigation
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