Book Title: Atma Swarup Vivechan
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 6
________________ विभंगज्ञान - विभावज्ञानान्तर्गत मिथ्याज्ञान की श्रेणी का अन्तिम प्रकार है— विभंगज्ञान । विभंगज्ञान अवधिविषयक मिथ्याज्ञान होता है। विभाव के इन दो भेदों सम्यग्ज्ञान एवं मिथ्याज्ञान के सम्बन्ध में यह भी एक उल्लेखनीय तथ्य है कि सम्यक्त्व अथवा मिथ्यात्व उस वस्तु या पदार्थ का नहीं होता जिसके विषय में ज्ञान प्राप्त किया जा रहा है, अपितु यह मिथ्यात्व अथवा सम्यक्त्व तो स्वयं ज्ञान प्राप्ति के प्रयत्नकर्त्ता की विशेषता हुआ करती है। अर्थात् इस भेद का आधार विषय नहीं अपितु ज्ञाता होता है । यदि ज्ञाता मिथ्या श्रद्धा रखता है तो उसके द्वारा लब्ध ज्ञान मिथ्या होगा। इसी प्रकार सम्यक् श्रद्धा वाला ज्ञाता जिस ज्ञान की अर्जना करता है वह सम्यग्ज्ञान की कोटि में आ जाता है । ज्ञाता की श्रद्धा के आधार पर ही ज्ञान के सम्यक् अथवा मिथ्या होने का निर्णय किया जाता है, पदार्थ के आधार पर नहीं । इसी आधार पर केवलज्ञान या पूर्णज्ञान (स्वभावज्ञान) के अतिरिक्त जितने अपूर्ण अथवा विभावज्ञान है, उनकी दो कोटियाँ की गयी हैं - मिथ्या एवं सम्यक् । जब ज्ञाता की आत्मा कर्मबद्ध होती है, तो आवरणयुक्त होने के कारण वह शुद्ध नहीं होती और केवलज्ञान अथवा पूर्णज्ञान की प्राप्ति का सामर्थ्य उसमें नहीं होता । ऐसी आत्मा (कर्मबद्ध) यदि मिथ्या श्रद्धावाली है तो उसे ३ प्रकार के मिथ्याज्ञानों का लाभ हो सकता है मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान और विभंगज्ञान; और जब उसकी आत्मा सम्यक् श्रद्धा से पूर्ण हो जाती है तो ये ही तीन मिध्याज्ञान तीन सम्यक्ज्ञान हो जाते हैं मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान । तत्वार्यसूत्र में भी ज्ञान के इन्हीं भेदों (८) को स्वीकार किया गया है, किन्तु वर्गीकरण तनिक भिसाधार लिए हुए है । तत्त्वार्थसूत्र में प्रस्तुत वर्गीकरण निम्नानुसार है- ज्ञान मत दर्शनोपयोग परोक्षज्ञान I श्रुति Jain Education International अवधि स्वभावदर्शन १ (केवलदर्शन) आत्म स्वरूप - विवेचन २१७ प्रत्यक्षज्ञान मनः पर्यव दर्शन - दर्शनोपयोग के कुल ४ भेद किये जाते हैं । दर्शन के वर्गीकरण को निम्नलिखित तालिका द्वारा निर्देशित किया सकता है केवल मतिअज्ञान श्रुतअज्ञान विपरीतज्ञान विभावदर्शन For Private & Personal Use Only विभंग अज्ञान २ चक्षुदर्शन ३ अचक्षुदर्शन ४ अवधिदर्शन प्रस्तुत तालिका से यह स्पष्ट होता है कि ज्ञानोपयोग की भाँति दर्शनोपयोग भी आरम्भ में दो वर्गों में विभक्त हो जाता है-स्वभावदर्शन तथा विभावदर्शन स्वभावदर्शन पूर्ण दर्शन है और इसका कोई उपभेद नहीं है । विभावदर्शन के ३ उपभेद हैं-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन तथा अवधिदर्शन । इस प्रकार दर्शनोपयोग के कुल ४ भेद हो जाते हैं। +6 www.jainelibrary.org.

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