Book Title: Atit ki Pramukh Sadhwaiya
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 4
________________ इता भगवान् महावीर के शासन में श्रमणी प्रमुखा, सत्य शील-समता प्राण चन्दनबाला का साधना मय जीवन बाल्यकाल से ही बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा है। चतुर्विध संघ के लिए प्रकाश स्तंभ व पल-पल प्रेरक। श्रमणी संघ का महासाध्वी चंदन बाला ने बड़ी विशिष्ट सूझबूझ से सफलता पूर्वक निर्वाह किया एवं आचार-विचार की परम्परा को गतिशील रखा। उत्कृष्ट त्याग-वैराग्य की साक्षात् जीवंत प्रतीक श्रमणी प्रमुखा चन्दनबाला का संयोग पाकर अनेक राजा-महाराजाओं-श्रेष्ठियों-धनपतियों-पुत्रियाँ, पुत्रवधुएँ-मृगावती जयंती जैसी श्रद्धा-शील निष्ठा विद्वद भव्यात्माएँ अपार वैभव शारीरिक सुख-साधनों को तिलांजलि देकर भगवान् महावीर के शासन में भिक्षुणी (श्रमणी) बनकर कृत कृत्य हो गई। तप-जप-साधना में अपने को समर्पित कर एक योद्धा, वीरांगना की भांति मोहकर्म से लोहा लिया। अन्ततः विजयी बन सिद्धत्व को प्राप्त किया। इसी श्रृंखला में मगधाधिपति सम्राट श्रेणिक की पट्टरानियाँ काली-सुकाली-महाकाली-कृष्णा -सुकृष्णा-महाकृष्णा- वीरकृष्णा-रामकृष्णा-पितृसेन -महासेन कृष्णा तथा नंदादि तेरह और प्रमुख रानियों ने भी महा श्रमणी चंदनबाला का सुखद सहवास-शरण पाया। अर्हन् प्ररूपित धर्म-दर्शन का आवश्यक अध्ययन पूर्ण कर गुरुणी वर्या चंदनबाला के नेतृत्व में क्रमश : - रत्नावली तप, कनकावली, लघुसिंह निष्क्रिड़ित, महासिंह निष्क्रिड़ित, सप्त-सप्तमिका, अष्टम-अष्टमिका नवम-नवमिका, दशम-दशमिका, लघुसर्वतोभद्र, महासर्वतोभद्र, मद्रोतर तप, मुक्तावलि स्थापना इस तरह तप साधना क्रम को पूरा किया। भगवान महावीर के धर्मसाधना संघ को चार चांद लगाये। तपाचार में अपूर्व कीर्तिमान स्थापित किया। भ. महावीर की माता देवानंदा (जिनकी कुक्षि में भ. की आत्मा बयासी (८२) रात्रि रही) पुत्री तथा बहिन ने भी भगवान के शासन में जैन आर्हती दीक्षा स्वीकार की। तप-जप-संयम-साधना आराधना की गरिमा-महिमा-मंडित पावन परम्परा में वे ज्योतिर्मान साधिकाएँ हो गई। ___ इसके पश्चात् भी समय-समय पर अनेकानेक संयम-निधि श्रमणियाँ हुई जिन्होंने जिन शासन की महत्ती प्रभावना की। साधना के क्षेत्र में श्रमणी-संघ वस्तुतः सफल रहा है। कहीं पर भी असफल होकर (बेरंग-चिट्ठी की तरह) नहीं लौटा। अपने आराध्य तीर्थपति-आचार्य-गुरु के साथ ही गुरुणी वर्या के शासन संघ (अनुशासन-आज्ञा) में सदैव समर्पित रहा है श्रमणी संघ। देश कालानुसार अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का प्रतिरोध-प्रतिकार किया है श्रमणी संघ ने, किंतु संघ के प्रति विद्रोह किया हो या प्रतिकूल श्रद्धा-प्ररूपणा स्पर्शना का नारा बुलंद किया हो ऐसा कहीं पर आगम के पृष्ठों पर उल्लेख नहीं मिलता है। हाँ मुनि संघ ने तो कई बार अर्हत्-शासन-संघ के विपरीत आचार-विचार धारा का उपयोग किया है। उन भिक्षु आत्माओं को निह्नव के रूप में पुकारा गया। श्रमणी-संघ ने ऐसा कभी नहीं किया। इस कारण मुनि-संघ की अपेक्षा साध्वी -संघ अधिक विश्वसनीय भूमिका निभाने वाला सिद्ध हुआ है। यद्यपि संस्याओं की दृष्टि में आज का श्रमणी-संघ उतना विशाल नहीं है। छोटे-छोटे विभागों में विभक्त है। तथापि यह वर्तमान का श्रमणी-समूह महासाध्वी चन्दनबाला का ही शिष्यानुशिष्या परिवार है। क्योंकि श्रमणी नायिका चन्दनबाला थी। देश-कालानुसार भले ही कुछ आचार-संहिता में परिवर्तन हुआ है। फिर भी मूलरूपेण उसी आचार प्रणाली का अनुगामी होकर चल रहा है। (१८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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