Book Title: Athottar so Name Parshwanath Stotra Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ अठोतर सो नामें पार्श्वनाथ स्तोत्र सं. मुनि भुवनचन्द्र केटलांक वर्षों पूर्वे कोई एक भंडारना प्रकीर्ण पत्रमाथी उतावळे ऊतारी लीधेली आ कृति (ए ऊतारेली नकलना आधारे) अहीं प्रस्तुत करी छे. कविए रचनावर्ष आप्यु नथी, पण ए ज पानामां बीजां बे स्तवनो पछी"संवत् १७६० वर्षे आसू सुदि ७ दिने लपिनीता मुंदरा बंदर मध्ये" एटलुं मळे छे. रचयिता श्री सहजकीर्तिनी बार जेटली कृतिओ जै.गू.क.मां नोंधायेली छे. सं. १६६१मां एमणे सुदर्शन श्रेष्ठी रास रच्यो छे. प्रस्तुत स्तोत्र जेवा ज विषयनी अन्य कृति 'जेसलमेर चैत्यप्रवाडि' १६७९मां रचाई छे. प्रस्तुत कृति पण एमनी ज रचना होवानी पूरी संभावना छे. आ स्तोत्रमा संगृहीत थयेला पार्श्वनाथ प्रभुना तीर्थस्थळो मोटा भागे आजे पण ए ज नामे प्रसिद्ध छे. चारसो वर्षमां आ नामो लोकजीभे बहु परिवर्तन नथी पाम्या ए जोई शकाय छे. सामान्य परिवर्तनो तरत पारखी शकाय एवा छे : महेव (मेवा नगर ?), ढिल्ली (दिल्ही) वगेरे. केटलांक नामो अजाण्यां लागे : छवटण, भोहंड, तिलधार, आसोप, मरोट वगेरे. प्राचीन तीर्थ भद्रेश्वरनुं नाम आमां नथी, परंतु 'कुकड़सर' नाम छे. भद्रेश्वरनी तद्दन नजीक आ नामनुं गाम आजे पण छे. आनो अर्थ ए के ते समये बहारना लोको आ तीर्थने ए नामे ओळखता हशे अने तीर्थनी आसपास वसेलं गाम ते वखते कदाच नहि होय. विमलगिरि अने पालीताणा बे नाम स्वतंत्र रूपे अलग गण्यां छे. पालीताणा गाममां पार्श्वनाथ प्रभुनुं मुख्य देरासर ते समये हशे. गिरनार अने जूनागढ पण अहीं अलग लीधा छे. राणपुर ए राणकपुर ज होवानी शक्यता छे. एक ठेकाणे कागळ खवाई जवाथी अक्षरो त्रुटित छे. पांचमी कडीमां बे ज पंक्ति छे, ए लिपिकारनी भूलने लीधे छे के कविए ज एम कर्यु छे ते नक्की करवा माटे आनी अन्य प्रतिओ जोवी पडे. इतिहास, पुरातत्त्व अने भूगोळना अभ्यासी विद्वानोने आ कृति पूरक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5