Book Title: Aryo se Pahele ki Bharatiya Sanskruti
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 3
________________ डा. गुलाबचन्द्र चौधरी : आर्यों से पहले की भारतीय संस्कृति : ५४१ डा० सुनीतिकुमार चटर्जी का कहना है कि : 'आज की नूतन सामग्री और नवीन उद्धार कार्य बतलाते हैं कि भारतीय सभ्यता के निर्माण में न केवल आर्यों को श्रेय है बल्कि उनसे पहले रहने वाले अनार्यों को भी है. अनार्यों का इस सभ्यता के निर्माण में बहुत बड़ा हिस्सा है. अनार्यों के पास आर्यों से बहुत बढ़ी-चढ़ी भौतिक सभ्यता थी. जब आर्य बेघरबार के लुटेरे थे तब अनार्य बड़े-बड़े नगरोंमें रहते थे. भारतीय धर्म और संस्कृति की अनेक परम्पराएं रीति-रिवाज, प्राचीन पुराण और इतिहास अनार्य भाषाओं से आर्य भाषा में अनूदित किये हैं क्योंकि आर्य भाषा ऐसी थी जो सर्वत्र छा गई थी. तथापि उसकी शुद्धि कायम न रह सकी क्योंकि उसमें अनेक अनार्य शब्द मिल गये हैं. मानव वंश-विज्ञान के अध्ययन से भारत की भूमि पर प्रथम जिस अनार्य जाति का पता चला है, वह है कृष्णांग (Negrito). बन्दर से विकसित हो उत्पन्न होने वाली किसी जाति का यहां पता नहीं चला. कृष्णांगों की सन्तान आज भी अन्दमान द्वीपों में पाई जाती है. उनकी भाषा का विश्व की किसी भाषा-शाखा से संबंध नहीं. पहले ये अरबसागर से चीन तक फैले हुए थे. पर अब वे या तो खतम कर दिये गये या दूसरी मानव शाखा के लोगों ने उन्हें अपने में पचा लिया. यत्र-तत्र बिखरे शेष लोगों से उनकी सुदूर अतीत की संस्कृति का अनुमान लगाना संभव नहीं. कहा जाता है कि उनके उत्तराधिकारी बलोचिस्तान में पाये जाते हैं तथा दक्षिण भारत की मुख्य जंगली जातियों में उनका जातीय गुण मिलता है. तिब्बत, बर्मा की नागा जाति के रूप में भी उनका अस्तित्व है. चूंकि यह जाति बहुत प्राचीन युग की है इसलिए बाद की सभ्यता में इसकी क्या देन रही है, यह कहना बड़ा कठिन है. यह जाति अपने पीछे आनेवाली शक्ति-शालिनी मानव शाखाओं से अपनी संस्कृति को बहुत कम बचा सकी. अजन्ता के एक चित्र में कृष्णांग जाति का चिन्ह मिलता है.. कृष्णांग जाति के बाद पूर्व की ओर से श्राग्नेय (Austric) जाति पाई. इनकी भाषा, धर्म और संस्कृति का रूप हिन्द चीन में मिलता है. इस जाति की संतानें और भाषा प्रशान्त महासागर के द्वीप-पुंजों में मिलती हैं. ये असम से भारत भूमि पर आये और यहां आकर कुछ तो कृष्णांग जाति में मिल गये और कुछ भारत के समृद्ध प्रदेशों में अपने से पीछे आनेवाली जातियों द्वारा पचा लिये गये. इस जाति का अवशेषरूप खासी, कोल, मुण्डा, संथाल, मुन्दरी, कुकु और शबर आदि जातियां हैं. एक समय था जब कि इस जाति के लोग सारे उत्तर भारत, पंजाब और मध्यभारत तक फैल गये थे तथा दक्षिण भारत में भी घुस गये थे. उत्तर भारत के विशाल नदियों के कछारों में बस जाने में इन्हें बड़ी सुविधा हुई. गंगा शब्द की व्युत्पत्ति आग्नेय भाषा के खांग, कांग आदि नदीवाचक शब्दों से कही जाती है. आर्यों की पद-रचना, ध्वनि और मुहावरों पर इनकी भाषा का बड़ा प्रभाव है. आर्यों ने इनके सम्पर्क में आकर अपनी भाषा के रूप को बदला है. ये भौतिक सभ्यता में बहुत बढ़कर थे. इनकी संस्कृति के अनेक स्तर थे जो मध्यभारत की उच्च विषम भूमियों में रहते थे या जो आर्यों के दबाव के फलस्वरूप भागे थे वे अब भी अविकसित हालत में हैं पर जो उत्तर भारत के मैदानों में रहते थे उनकी संस्कृति का अवशेष परिवर्तित आर्वीकरण के रूप में अब भी विद्यमान है. आर्य-संस्कृति और भाग्नेय संस्कृति का आदान-प्रदान विशेषतः भारत के पूर्वीय प्रान्तों में हुआ है. आयों ने इनसे चावल की खेती करना सीखा. नारियल, केला, ताम्बूल, सुपाड़ी, हलदी, अदरक, बैंगन, लौकी आदि का उपयोग आग्नेयों की देन है. कोरी अर्थात् बीसी की गणना तथा चन्द्रमा से तिथि की गणना आग्नेय है. वे अपने मृतकों की पाषाण समाधि बनाते थे. उनके यहाँ परलोक की मान्यता थी तथा वे विश्वास करते थे कि आत्मा अनेक पर्यायों (हालतों) में जाती है. उनकी इस विचारधारा से आर्यों को पुनर्जन्म का सिद्धान्त मिला. डा० सुनीतिकुमार चटर्जी लिखते हैं कि आर्यों ने अनार्यों से 'कर्म तथा परलोक सिद्धान्त को, योगसाधना, शिव, देवी के रूप में परमात्मा को मानना, वैदिक होमविधि के मुकाबिले उनकी पूजाविधि अपनाई'. ईसा के हजारों वर्ष पूर्व, आर्यों के आने से अवश्य बहुत प्राचीन काल में पश्चिम भारत से द्रविड़ लोग आए. यह जाति आजकल दक्षिण भारत के बहुभाग में है पर आधुनिक खोजों से सिद्ध है कि द्रविड़ों का मूल निवासस्थान पूरबी भूमध्यसागर के प्रदेश हैं. लघु एशिया के एक अभिलेख में वहां की जाति का नाम 'मिल्ली' लिखा है जो तामिल PANDEY SY LATEM Jain HD MELamsuTHINTATIONSRTRAMAYANUARimjums municibrary.org MAINTAMITHHTH H

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