Book Title: Aryikao ki Achar Paddhati
Author(s): Fulchandra Jain Shatri
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 1
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 394 आर्यिकाओं की आचार-पद्धति प्रो. (डॉ.) फूलचन्द जैन 'आर्यिका' शब्द का प्रयोग दिगम्बर परम्परा में समणी अथवा साध्वी के लिए हुआ है जो पंच महाव्रतधारी होने पर भी विशिष्ट मर्यादाओं में रहकर आचार का पालन करती है। विद्वान् लेखक ने आर्यिका के वेष, वसतिका, समाचारी, आहारार्थगमन-विधि आदि पर प्रकाश डालने के साथ श्रमणों के साथ व्यवहार में मर्यादाओं का भी उल्लेख किया है। -सम्पादक चतुर्विध संघ में आर्यिकाओं का स्थान ____ मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ में ‘आर्यिका' का दूसरा स्थान है। श्वेताम्बर जैन परम्परा के प्राचीन आगमों में भी यद्यपि इन्हें अज्जा, आर्या, आर्यिका कहा है, किन्तु इस परम्परा में प्रायः ‘श्रमणी' एवं 'साध्वी' शब्द का अधिक प्रयोग हुआ है। प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव से लेकर अन्तिम तीर्थंकर महावीर तथा इनकी उत्तरवर्ती परम्परा में आर्यिका संघ की एक व्यवस्थित आचार पद्धति एवं उनका स्वरूप दृष्टिगोचर होता है। श्रमण संस्कृति के उन्नयन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका की सभी सराहना करते हैं। यद्यपि भगवान् महावीर के जीवन के आरम्भिक काल में स्त्रियों को समाज में पूर्ण सम्मान का दर्जा प्राप्त नहीं था, किन्तु इन्होंने जब समाज में स्त्रियों की निम्नस्थिति तथा घोर उपेक्षापूर्ण जीवन देखा तो भगवान् महावीर ने स्त्रियों को समाज और साधना के क्षेत्र में सम्मानपूर्ण स्थान देने में सबसे पहले पहल की और आगे आकर इन्होंने अपने संघ में स्त्रियों को ‘आर्यिका' (समणी या साध्वी) के रूप में दीक्षित करके इनके आत्म-सम्मान एवं कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। इसका सीधा प्रभाव तत्कालीन बौद्ध संघ पर भी पड़ा और महात्मा बुद्ध को भी अन्ततः अपने संघ में स्त्रियों को भिक्षुणी के रूप में प्रवेश देना प्रारम्भ करना पड़ा। __ आचार विषयक दिगम्बर परम्परा के प्रायः सभी ग्रन्थों में जिस विस्तार के साथ मुनियों के आचार-विचार आदि का विस्तृत एवं सूक्ष्म विवेचन मिलता है, आर्यिकाओं के आचार-विचार का उतना स्वतन्त्र विवेचन नहीं मिलता। साधना के क्षेत्र में मुनि और आर्यिका में किञ्चित् अन्तर स्पष्ट करके आर्यिका के लिए मुनियों के समान ही आचार-विचार का प्रतिपादन इस साहित्य में मिलता है। मूलाचारकार आचार्य वट्टकेर एवं इसके वृत्तिकार आचार्य वसुनन्दि ने कहा है कि जैसा समाचार (सम्यक्-आचार एवं व्यवहार आदि) श्रमणों के लिए कहा गया है उसमें वृक्षमूल, अभ्रावकाश एवं आतापन आदि योगों को छोड़कर अहोरात्र सम्बन्धी सम्पूर्ण समाचार आर्यिकाओं के लिए भी यथायोग्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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