Book Title: Arvind ki Yoga Sadhna
Author(s): Kanhailal Rajpurohit
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 3
________________ अरविन्द की योग-साधना का योग-साधना ७५ . दिलीपकुमार राय ने अपनी पुस्तक 'तीर्थकर' में अरविन्द से एक साक्षात्कार का उल्लेख किया है, जिसमें उनकी साधना का उद्देश्य स्पष्टतः उभरा है। उनके शब्दों में "एक समय मैं भी अपने योग के माध्यम से संसार के रूप को बदलना चाहता था। मैं मानवता की मूलभूत प्रकृति व प्रवृत्तियों को बदलना व उन सभी बुराइयों का निराकरण करना चाहता था जो मनुष्यों को प्रभावित करती हैं । इसी उद्देश्य और दृष्टिकोण से मैं प्रारम्भ में योग की ओर प्रवृत्त हुआ तथा मैं पाण्डिचेरी आया क्योंकि अपनी योगसाधना यहाँ करने का मुझे ऊपर से निर्देश प्राप्त हुआ था।"५ साधनापथ के पथिक हेतु आवश्यक योग्यताएँ उपर्युक्त महान् उद्देश्य से प्रेरित अरविन्दीय योग-साधना के लिए स्वस्थ मस्तिष्क, शक्तिशाली प्राणिक और शारीरिक व्यक्तित्व अत्यन्त आवश्यक अर्हताएँ हैं। ऐसा बताना उस भ्रान्त मान्यता का निवारण करने हेतु आवश्यक है जो इसे एक सीधा-सपाट मार्ग समझते हैं अथवा यह मानते हैं कि योग की ओर स्वभावतया वे लोग उन्मुख होते हैं जो भावुक हैं या जीवन की विपदाओं का सामना करने में असमर्थ हैं। श्री अरविन्द-योग इस प्रकार के शिथिल बुद्धि वाले लोगों के लिए नहीं था। मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ लोगों को ही वे अपने योगमार्ग में प्रवेश की अनुमति देते हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा है-"मेरा योग मस्तिष्क के पूर्ण सन्तुलन की माँग करता है, इसलिए जिनके मन में ऊपरी तौर पर हल्की इच्छा जागी हो वे इधर न आयें क्योंकि इस योग में उच्चतर चेतना के आवरण के लिए उद्घाटित होने की सम्भावना के साथ ही प्राणिक स्तर की शक्तियों के भी घुस आने की सम्भावना रहती है । इसलिए यदि किसी व्यक्ति के पास पूर्ण बौद्धिक सन्तुलन नहीं है तो उन गलत शक्तियों द्वारा अधिकृत होने की आशंका रहती है।" वे पूरी सृष्टि को आध्यात्मिक आधारों पर अवस्थित देखना चाहते हैं अतः साधक के लिए एक सतत तर्कपूर्ण एवं जागरूक मस्तिष्क भी अनिवार्य है। उनके अनुसार-"सत्य की खोज के लिए एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण मौलिक आवश्यकता है समीक्षात्मक तर्क क्षमता, करीब-करीब हठी किस्म का ऐसा दिमाग जो हर मुखौटे को चीर सकता हो और चालू बातों, विचारों व मतों को अस्वीकार कर सकता हो। व्यक्ति ऐसे साहस से युक्त होना चाहिए कि वह किसी भी प्रकार के धोखे व आवरण से भिन्न सत्य को देख सके ।' गलदश्रु भक्ति घातक इसलिए अपने साधना-पथ में श्री अरविन्द निरन्तर सन्तुलन बनाये रखने की वांछनीयता पर जोर देते हैं । भावुकता की अति तक पहुंची हुई वैष्णव-साधना के इसी कारण वे प्रबल विरोधी हैं। स्वयं भक्ति का विरोध उन्हें अभीष्ट नहीं था वरन् उसके साथ जुड़ी हुई गलदश्रु भावुकता का विरोध था, जो मस्तिष्क को असन्तुलित बना देती है। वे भक्ति के उस खतरे से आगाह करते हैं जो संवेगों के उच्छल वेग को जगाने का कारण होता है। श्री अरविन्द-साधना का स्वरूप स्वयं श्री अरविन्द द्वारा इधर-उधर छोड़े गये कुछ संकेतों तथा अन्य स्रोतों से हमें उनकी साधना की सामान्य दिशा, उन विभिन्न स्तरों का जिनसे वे गुजरे तथा समय-समय पर उनके द्वारा अपनाये गये परिष्करण, उनकी पद्धति के विशिष्ट लक्षण तथा अन्ततः उन अत्यधिक कठिन व कभी-कभी अतीव पीड़ाजनक स्थितियाँ जिनका उन्हें सामना करना पड़ा-आदि बातों का अच्छा परिचय प्राप्त होता है। अज्ञात के अन्वेषण की अभिनव पद्धति उनके अनुसार योग-साधना एक सर्वोच्च प्रकार का साहसिक अभियान तथा व्यक्ति के सम्पूर्ण अस्तित्व व आत्मा के साथ एक प्रयोग है। उनके मामले में यह बात विशेष रूप से घटित होती है क्योंकि उन्होंने सर्वथा नवीन आधारों का सृजन करके स्वयं को अध्यात्म क्षेत्र के अनन्वेषित अज्ञातसिंधु की उत्ताल उर्मियों के हवाले करके बिना किसी गुरु की सहायता के खतरों से पूर्ण भीषण मार्गों को पार किया। सामान्यतः जब कोई व्यक्ति अध्यात्म-पथ का अनुकरण करता है तो उसे समस्त भौतिक सुखों का त्याग करना होता है एवं विविध मानसिक व नैतिक संघर्षों से गुजरना पड़ता है जिनकी कुछ झलक एक शब्द 'मर्मभेदी' से प्राप्त होती है। जब एक बार निर्णय ले लिया गया श्री अरविन्द पूर्ण निष्ठा एवं उद्देश्य की तीव्रानुभूति से अपने कार्य में जुट गये जो उनकी कार्य पद्धति की विशिष्टता थी। उनकी साधना ने शनैः शनैः उन्हें अपनी आध्यात्मिक प्रगति में सहायता करना प्रारम्भ किया। उत्तरोत्तर इसका विकास मानवता के लिए योग के रूप में हुआ और अन्ततः उसने सार्वभौम योग के साथ तादात्म्य स्थापित कर लिया। वह शक्तिशाली ऊर्ध्वगामी विकास में सचेतन साझेदारी तथा दिव्य चेतना की ओर आरोहण बन गयी। यह स्पष्ट है कि श्री अरविन्द की साधना के इतिहास में योग का एक विशेष स्थान और महत्व है। यह उस अद्वितीय आध्यात्मिक प्रगति के साथ विकसित हुआ जिस पर उन्होंने बल दिया था। दिवाकर का कथन इस सम्बन्ध में अत्यन्त Gas Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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