Book Title: Arhadchudamani sara Satika Author(s): Bhadrabahuswami, Publisher: Mahavir Granthmala View full book textPage 7
________________ मईच्चूडामणि. सार -QUEBLUED आतिपहिं पुरिसेहिं महिला अहिधूमिपहिंसव्वेहिं ॥ डहि होइ संड्डो जाणिज्जह पन्ह वलिएहिं ॥ ९ ॥ सीलिये इने पतितैः पुरुषो भवति अभिधूमितैः स्त्री दग्धैर्नपुंसकमितिजातेति ॥ ९ ॥ गुणय वण्णा पढम बीय तीय चउथ पंचमया ॥ तहविप्राय वीसा सुद्दोविय संकराइ सयलाई ॥ १० ॥ पर्णाः प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचमकाः तदा विप्र राजन्य विट्शूद्राः अपि च संकरजातयः सर्व विष्णेहि कमेण बालो कुमार उत्तरुणो ॥ मज्झिमवयोवि थविरो जाणिज्जइ पन्ह पडिपहिं ॥ ११ ॥ या एरिरेव वर्णै म पतितैः क्रमेण बालः कुमारस्तरुणो मध्यमवया वृद्धश्च भवतीति जानीहि ॥ ११ ॥ ॥ एहिं विद्वी मज्जा अहिधूमिपहिं सा होई ॥ उड्नेहिं णत्थि विट्ठी जिणवयणं सच्चयं जाण ॥ १२ ॥ तदृष्टिरनिघूमितैर्मध्यमा वृष्टिः दग्धेनास्ति वृष्टिरिति जिनवचनं सत्यमेव जानीहि ॥ १२ ॥ ज्जिह सस्त पन्हे आलिंगिएहिं वण्णेहिं ॥ अहिघूमिएहिं किंचिण णासह डड्रेहिं णो चित्तं ॥ १३ ॥ तत्पद्यते सत्यं प्रश्ने आलिंगितैर्वर्णैः, अभिधूमितैः किंचिदुत्पद्यते, दग्धैर्नश्यति, अत्र नोचित्रमिति ॥ १३॥ आलं पन्हे वणो आलिंगिउं पयासेइ || अहिधूमिओवि भूअं डड्डो उण भावियं णूणं ॥ १४ ॥ लिंगतो वर्णः संप्रतिकालं प्रकाशयति, अभिधूमितोऽपि भूतं दग्धः पुनर्भाविकालं नूनमिति ॥ १४ ॥ 22 ( HEDIEDLEMISHEI (@1000Page Navigation
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