Book Title: Apbhramsa katha Kavyo ki Bharatiya Sanskruti ko Den Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf View full book textPage 4
________________ स्वामी बना देता है । इन कथा - काव्यों में युद्धका अत्यन्त विस्तारसे वर्णन हुआ है । युद्धके तत्कालीन अस्त्र-शस्त्रोंके बारेमें भी इन कथा-काव्योंसे अच्छी जानकारी मिलती है। नगर में किले होते थे, युद्धकी मोर्चाबन्दी उसमें की जाती थी । जिणदत्तचीप में धनुष, तलवार, डीकलु, गोफणी, आदि शस्त्रोंका नाम उल्लेख किया गया है। प्रत्येक शासक के पास चतुरंगी सेन होती थी । युद्धके विशेष बाजे होते थे तथा ढोल, भेरी, निशान बजने से सैनिकोंमें युद्धोन्माद बढ़ता रहता था। श्रीपालका अपने वचक साथ होनेवाले युद्धका कविने बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। राजा हाथीपर बैठकर युद्धके लिए प्रस्थान करता था वह अपने चारों ओर अंगरक्षकोंसे घिरा रहता था । जनता में राजाका विशेष आतंक रहता था, कोई भी उसकी आज्ञाका उलंघन करनेकी सामर्थ्य नहीं रखता था । व्यापारियोंसे छोटे-छोटे राजा भी खूब भेंट लिया करते थे। भविष्यदत्तने तिलकद्वीप पहुँचकर बाँके राजाको खूब उपहार दिये थे। इन राजाओंमें छोटी-छोटी बातोंको लेकर जब कभी युद्ध छिड़ जाता था । इनमें कन्या, उपहार आदिके कारण प्रमुख रहे हैं । आर्थिक स्थिति इन कथा काव्यों में समूचे देशमें व्यापारकी एक-सी स्थिति मिलती है। देशका व्यापार पूर्णतः वणिक वर्गके हाथमें रहता था । वणिक् - पुत्र टोलियों में अपने नगरसे बाहर व्यापार के लिए जाते थे । समुद्री मार्ग से वे जहाज में बैठकर छोटे-छोटे द्वीपोंमें व्यापारके लिए जाते थे और वहाँसे अतुल सम्पत्ति लेकर लौटते थे । जिणदत्त सागरदत्त के साथ जब व्यापारके लिए विदेश गया था तो उसके साथ कितने ही वणिक्पुत्र थे। उनके साथ विविध प्रकारकी विक्रीकी वस्तुएँ थीं जो विदेशोंमें मंहगी थीं और देशमें सस्ती थीं। बैलॉपर सामान लादकर वे विदेशों में जाते थे । द्वीपोंमें जानेके लिए वे जहाजोंका सहारा लिया करते थे । छोटे-छोटे जहाजों का समूह होता था और उनका एक सरदार अथवा नायक होता था, सभी व्यापारी उसके अधीन रहते थे। श्रीपालकहामें धवल सेठकी अतुल सम्पत्तिका वर्णन किया गया है। भविष्यदत्त, जिणदत्त और जीवन्धर आदि सभी क्षेष्ठिपुत्र थे जो व्यापार के लिए बाहर गये थे और वहाँ अतुल सम्पत्ति लेकर लौटे थे। इन कथा- काव्योंमें जनताकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी ऐसा आभास होता है लेकिन फिर भी सम्पत्तिका एकाधिकार व्यापारी वर्ग तक ही सीमित था । उस समय सिंघल द्वीप व्यापार के लिए प्रमुख आकर्षणका केन्द्र था । जिणदत्त व्यापार के लिए सिंघल द्वीप गया था वहाँ जवाहरातका खूब व्यापार होता था । लेन-देन वस्तुओंमें अधिक होता था, सिक्कोंका चलन कम था। उन दिनों द्वीपोंमें व्यापारी खूब मुनाफा कमाते थे सिंघल द्वीपके अतिरिक्त भविसयत्तकहा में मदनागद्वीप, तिलकद्वीप, कंचनद्वीप आदिका वर्णन भी मिलता है । इन कथा काव्यों में ग्राम एवं नगरोंका वर्णन भी बहुत हुआ है । भविसयत्तकहामें गजपुर नगर में पथिक जन पेड़ोंकी छायामें घूमते हैं। हास-परिहास करते हुए गन्ने का रसपान करते हैं। जिणदत्त चौपईमें जो बसन्तपुरनगरका वर्णन किया गया है उसके अनुसार बाँके सभी निवासी प्रेमसे रहते थे। कोली, माली, पटवा एवं सपेरा भी दया पालते थे । ब्राह्मण एवं क्षत्रिय समाज भी चरम के संयोगसे वृत्त रहते थे । नगर बाहर उद्यान होते थे । सागरदत्त सेठके उद्यानमें विविध पौधे थे। नारियल एवं आमके वृक्ष थे। नारंगी, छुहारा, दाख, पिंड, खजूर, सुपारी, जायफल, इलायची, लौंग आदि-आदि फलोंके पेड़ थे। पुष्पोंमें मजा, मालती, चम्पा, रायचम्पा, मुचकुन्द, मौलसिरी, जयापुष्प, पाउल, गुडहल आदिके नाम उल्लेखनीय हैं। १५८ अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5