Book Title: Apbhramsa Vaiyakaran Hemchandra ke Dohe
Author(s): Aditya Prachandiya
Publisher: Z_Bhanvarlal_Nahta_Abhinandan_Granth_012041.pdf

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________________ अपभ्रंश वैयाकरण हेमचन्द्र के दोहे - डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', अलीगढ़ पाणिनी की कोटि के महान वैयाकरण होते हुए हेमचन्द्र काव्य-प्रणयन में भी किसीसे पीछे नहीं रहे । वे अपभ्रंश के ही नहीं संस्कृत और प्राकृत के भी कवि कोविद थे T एक व्यक्ति में ऐसी विरोधी रुचियों का समन्वय विलक्षण है । असाधारण प्रतिभा के धनी हेमचन्द्र का आरम्भिक नाम चंगदेव था । जैनदीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् आपका नाम हेमचन्द्र पड़ा। आप श्वेताम्बर जैन थे और गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज एवं उनके भतीजे कुमारपाल के समसामयिक प्रतिष्ठित पण्डित थे । आप अधिकतर समय अन्हिलवाड़ में रहे । ' आपका समय संवत् १९४५ से सं० १२२६ तक का है । २ अपनी प्रखर ३ प्रतिभा के कारण हेमचन्द्र 'कलिकाल सर्वज्ञ' से सम्बोधित हुए । १ अपभ्रंश साहित्य, हरिवंश कोछड़, पृष्ठ ३२१ । २ (क) हिस्ट्री आफ मिडीवल हिन्दू इन्डिया, भाग ३, पृष्ठ ४११ । (ख) जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ ४४८ । .५ चन्द्र का बहुमुखी व्यक्तित्व महान् है । आपके 'सिद्ध हेम शब्दानुशासन' ( व्याकरण ) के अतिरिक्त 'लिंगानुशासन' (व्याकरण), 'संस्कृत द्वयाश्रय' ( महाकाव्य ), 'प्राकृत द्वयाश्रय' या 'कुमारपाल चरित' ( महाकाव्य ), 'काव्यानुशासन' (अलंकार), 'छंदोऽनुशासन' (छंद शास्त्र), 'अभिधान चिन्तामणि' (कोष), 'अनेकार्थ संग्रह' (कोष), ‘देशीनाममाला' (कोष), 'निघंटुकोष' (वैद्यक कोष), 'प्रमाण मीमांसा' (न्याय), 'योगशास्त्र', 'त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र' ( महापुराण) आदि अन्य अनेक ग्रन्थ विविध विषयों का निरूपण करते हैं । अपने व्याकरण में जनसाधारण में प्रचलित दोहों को उदाहृत करके आपने लोक साहित्य की महान सम्पत्ति की सुरक्षा की है साथ ही अपभ्रंश काव्य का 'दोहा' काव्यरूप के स्वरूप समझने की प्रामाणिक सामग्री प्रस्तुत की है । दोहा या दूहा अपभ्रंश का लाडला छंद है । ५ हेमचन्द्र के दोहे अपभ्रंश काव्य में महनीय हैं। साहित्यिक सौन्दर्य से सम्पृक्त आपके दोहे अपभ्रंश. साहित्य में निरुपमेय निधि है । वस्तुतः अपभ्रंश वाङ्गमय के हेमचन्द्र आधार स्तम्भ हैं । हेमचन्द्र द्वारा उदाहृत दोहों का सरसता, भाव-तरलता एवं कलागत सौन्दर्य की दृष्टि से 'गाथा सप्तशती' के समान ही मूल्य है । इन दोहों में निसर्ग-सिद्ध काव्यत्व की गरिमा निहित है । विषयवस्तु की दृष्टि से ये दोहे वीरभावापन्न, शृंगारिक, नीतिपरक, अन्योक्तिपरक, वस्तु Jain Education International काव्यानुशासन की भूमिका, रसिकलाल पारीख, पृष्ठ २६१ । (ख) अपभ्रंश पाठमाला, प्रथम भाग, नरोत्तमदास स्वामी, पृष्ठ ६३ । ४ हिन्दी साहित्य की भूमिका, डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृष्ठ १३ । (क) अपभ्रंश भाषा और साहित्य, डॉ० देवेन्द्र कुमार जैन, पृष्ठ ११७ । (ख) जैन साहित्य की हिन्दी साहित्य को देन, श्री रामसिंह तोमर, प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ ४६८ । आदिकालीन हिन्दी साहित्य शोध, डॉ० हरीश, पृष्ठ १५ । For Private & Personal Use Only [ ५६ www.jainelibrary.org

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