Book Title: Apbhramsa Katha Kavyo ki Bharatiy Sanskruti ko Den Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 5
________________ प्रेमाख्यानक तत्त्व अपभ्रंश भाषाके इन कथा-काव्योंमें प्रेमाख्यानक तत्त्वका अच्छी तरह पल्लवन हुआ है / हिन्दी भाषामें जिन प्रेमाख्यानक काव्योंकी सर्जना हई उसमें अपभ्रंशके कथा काव्यका अत्यधिक प्रभाव है। विलासवईकहा, भविसयत्तकहा, जिणदत्तचौपई, श्रीपालकहा आदि सभी में प्रेमाख्यानक काव्य भरा पड़ा है / भविसयत्तकहा एवं श्रीपालकहामें विवाह होनेके पश्चात् नवदम्पत्ति में प्रेमका संचार होता है। भविष्यदत्त वास्तविक प्रेमके कारण ही भविष्यानुरूपाको चतुरतासे प्राप्त करता है और सुमित्राको युद्ध के पश्चात् प्राप्त करता है। जिणदत्त पुतलीके रूपमें चित्रित विमलमतीके रूप-सौन्दर्यको देखकर आसक्त हो जाता है, वह अपने आपको भूल जाता है और रूपातीत उस सुन्दरीको पाने के लिए अधीर हो उठता है। इसी प्रसंगमें इस कथा-काव्यमें विमलमतीके सौन्दर्यका जो वर्णन हुआ है वह प्रेमाख्यानक काव्योंका ही रूप है। चंपावण्णी सोहइ देह, गल कंदहल तिण्णि जसु देह / पीणत्थणि जोव्वण मयसाय उर पोटी कडियल वित्थार / / विमलमतीको प्राप्त करनेके पश्चात भी जिणदत्त उसके प्रेममें डूबा हआ रहा और अपनी विदेश यात्रासे लौटने के पश्चात् विरहाग्निमें डूबी हुई अपनी दो पत्नियोंके साथ विमलमतीको पाकर प्रसन्नतासे भर गया। विलासवती कथा तो आदिसे अन्त तक प्रेमाख्यानक काव्य है। इस कथा काव्यमें वर्णित प्रेम विवाहके पूर्वका प्रेम है। राजमार्गपर जाते हुए राजकुमार सनतकुमारके रूपको देखकर विलासवती उसपर मुग्ध हो जाती है और राजमहलकी खिड़कीसे ही फूलोंकी माला अपने प्रेमीके गले में डाल देती है / सनतकुमार भी विलासवतीके रूपलावण्यको देखकर उसपर आसक्त हो जाता है। धीरे-धीरे प्रेमकी अग्निमें दोनों ही प्रेमीप्रेमिका जलने लगते हैं और एक-दूसरेको पानेकी लालसा करते हैं और दोनोंका उद्यानमें साक्षात्कार हो जाता है लेकिन प्रेम प्रणयको तबतक आत्मसात् नहीं करते जबतक कि विवाह बन्धनमें नहीं बंध जाते / इसके लिए उन्हें काफी वियोग सहना पड़ता है। प्रेमीके वियोगसे विकल होकर विलासवती मध्य रात्रिको सती होनेके लिए श्मशान की ओर प्रस्थान कर देती है। लेकिन मार्गमें वह डाकुओं द्वारा लूट ली जाती है / और एक समुद्री व्यापारी द्वारा खरीद ली जाती है। जहाजके टूट जानेसे वह एक आश्रममें पहुंच जाती है संयोगसे नायक सनतकुमार भी अपनी प्रेमिकाके वियोगसे सन्तप्त उसी आश्रममें पहुँच जाता है और विलासवतीके बिना अपने जीवनको व्यर्थ समझने लगता है। अन्तमें आश्रममें ही वैवाहिक बन्धनमें बंध जाते हैं। इसके पश्चात् भी एक-दूसरेका वियोग होनेपर मृत्युको आलिंगन करनेको तैयार होना नायक-नायिकाके आदर्श प्रेमको प्रकट करता है। इस प्रकार इन कथा-काव्योंमें जिस प्रेम कथानकका चित्रण हुआ है उसका प्रभाव हमें हिन्दीके कुछ प्रेमाख्यानक काव्योंके वर्णनमें मिलता है। लेकिन इन सबके अतिरिक्त पुण्णासवकहा, धम्मपरिक्खा, सत्तवसणकहा जैसी कथाकृतियोंमें भारतीय जनजीवनमें सदाचार, नैतिकता, सत्कार्यों में आस्थाका रूप भरनेका जो प्रयास किया है वह भारतीय संस्कृतिके पूर्णत: अनुरूप है। यह कथाएं जनजीवनके स्तरको ऊँचा उठानेवाली हैं तथा गत सैकड़ों वर्षोंसे श्रद्धालु पाठकोंको अच्छे पथपर चलनेकी प्रेरणा देती है। इस प्रकार इन कथा काव्योंने भारतीय संस्कृतिके एकरूपात्मक स्वरूपको स्थायी रखने में तथा उसका विकास करने में जो योगदान दिया है वह सर्वथा स्तुत्य है। इतिहास और पुरातत्त्व : 159 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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