Book Title: Aparigraha Manav Jivan ka Bhushan
Author(s): Hastimal Acharya
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 6
________________ • श्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. · नहीं करता कि उससे उसको अधिक लाभ होगा, बल्कि उसके साथ यह भावना भी हैं कि यह परिग्रह दुःखदायी हैं, इससे जितना अधिक स्नेह रखूँगा, मोह रखूंगा, यह उतना ही अधिक क्लेशवर्द्धक तथा आर्त्त एवं रौद्र-ध्यान का कारण बनेगा । ३४७ 'स्थानांग' सूत्र में श्रावक के जो तीन मनोरथ बताये गये हैं, उनमें पहले मनोरथ में परिग्रह- त्याग को महती निर्जरा का महान् कारण बताते हुए उल्लेख किया गया हैं --- " तिहि ठाणेहिं समणोवासए महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ तं जहाकया णं अहं अप्पं वा बहु वा परिग्गहं परिचइस्सामि, एवं समणसा सवयसा सकायसा जागरमाणे समणोवासए महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ ।” अर्थात् - तीन प्रकार के मनोरथों की मन, वचन और क्रिया से भावना भाता हुआ श्रावक पूर्वोपार्जित कर्मों को बहुत बड़ी मात्रा में नष्ट और भवाटबी बहुत बड़े पथ को पार कर लेता हैं । परिग्रह घटाने सम्बन्धी मनोरथ इस प्रकार हैं - अरे ! वह दिन कब होगा, जब मैं अल्प अथवा अधिकाधिक परिग्रह का परित्याग कर सकूंगा । Jain Educationa International 'स्थानांग' सूत्र में जिस प्रकार श्रावक के तीन मनोरथों का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार साधु के तीन मनोरथों का भी उल्लेख है । गृहस्थ का जीवन व्रत - प्रधान नहीं, शील- प्रधान और दान- प्रधान है । साधु का जीवन संयम प्रधान एवं तप-प्रधान हैं । गृहस्थ के जीवन की शील और दान - ये विशेषताएँ हैं । गृहस्थ यदि शीलवान् नहीं हैं तो उसके जीवन की शोभा नहीं । जिस प्रकार शीलवान् होना गृहस्थ जीवन का एक आवश्यक अंग है, उसी तरह अपनी संचित सम्पदा में से उचित क्षेत्र में दान देना, अपनी सम्पदा का विनिमय करना और परिग्रह का सत्पात्र में व्यय करना, यह भी गृहस्थ जीवन का एक प्रमुख भूषरण और कर्तव्य हैं । धर्मस्थान में परिग्रही बनकर प्राना चाहिए धर्मस्थान में आने वाले भाई-बहिनों से यह कहना है कि सबसे पहले ध्यान यह रखा जाय कि अपरिग्रहियों के पास जाते हैं तो वे ज्यादा से ज्यादा परिग्रहियों का रूप धारण करके जायें । हम लोग क्या हैं ? अपरिग्रही । हमारे पास सोने का कन्दोरा है क्या ? नहीं, बढ़िया सूट है क्या ? नहीं । हमारे पास पैसा होने की शंका है क्या ? नहीं, हमारे पास सिंहासन भी रजत For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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