Book Title: Anusandhan 2003 12 SrNo 26
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 134
________________ December - 2003 १२७ भाविं भगतिं चरम जिनेस्वर, स्तवीओ बहु सुखकारीजी । राजरीधि सुख संपति पामइ, सुणिय को नरनारी जी । आठइ मद जीप्या जीन वीरि, कीधो जगह प्रकासो जी ॥३९॥ कलस ॥ करी प्रकास जिन मुगति पोहोता, वर्धमान नरवीर रे शास्यन जेहनुं आज वरतिं नीरमल गंगानीर रे ॥४०॥ तपगछ साचो देखी राचो वीजइ सेनसूरि गछधणी । सागणनो सूत ऋषभ पभणइ वीर नामि ऋधि घणी ॥४१॥ इती वीरस्तवन संपूरण ॥ केटलाक शब्दो कडी नहइसार लोकांतीक अशोष पूखरणि अतीसहइ भंगि * * * * * * * * * * नयसार (महावीर स्वामी- प्रथम जन्मनुं नाम) देवजाति, नाम अशोक (वृक्ष) पुष्करिणी अतिशय शृंग ईति= उपद्रवो दुर्भिक्ष वृक्ष कोमल मुखना मूळथी-मों वडे सुर-देव मयगल-हाथी दूरभष्य वीरष कुअलों मुख्यमुल सूर मेगल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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