Book Title: Anuman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 4
________________ १७७ अपनाया और उन्होंने दिङनागकी तरह ही न्याय प्रादि शास्त्र सम्मत वैदिक परम्पराके अनुमान लक्षण, प्रकार श्रादिका खण्डन किया जो कि कमी प्रसिद्ध पूर्ववर्ती बौद्ध ताकिकोंने खुद ही स्वीकृत किया था। अबसे वैदिक और बौद्ध तार्किकोंके बीच खण्डन-मएडनकी खास आमने-सामने छावनियाँ बन गई। वात्स्यायनभाष्यके टीकानुटोकाकार उद्योतकर, वाचस्पति मिश्र श्रादिने वसुबन्धु, दिङ्नाग, धर्मकीर्ति आदि बौद्ध तार्किकोंके अनुमानलक्षणप्रणयन श्रादिका जोरशोरसे खण्डन किया जिसका उत्तर क्रमिक बौद्ध तार्किक देते गए हैं। __बौद्धयुगका प्रभाव जैन परम्परा पर भी पड़ा। बौद्धतार्किकोंके द्वारा वैदिक परम्परासम्मत अनुमान लक्षण, भेद आदिका खण्डन होते और स्वतन्त्रभावसे लक्षणप्रणयन होते देखकर सिद्धसेन जैसे जैन तार्किकोंने भी स्वतन्त्रमावसे अपनी दृष्टिके अनुसार अनुमानका लक्षणप्रणयन किया । भट्टारक अकलङ्कने उस सिद्धसेनीय लक्षणप्रणयन मात्रमें ही सन्तोष न माना । पर साथ ही बौद्धतःकिंकोंकी तरह वैदिक परम्परा सम्मत अनुमानके भेद प्रभेदोंके खण्डनका सूत्रपात भी स्पष्ट किया जिसे विद्यानन्द प्रादि उत्तरवर्ती दिगम्बरीय तार्किकोंने विस्तृत व पल्लवित किया। नए बौद्ध युग के दो परिणाम स्पष्ट देखे जाते हैं । पहिला तो यह कि बौद्ध और जैन परम्परामें स्वतन्त्र भावसे अनुमान लक्षण श्रादिका प्रणयन और अपने ही पूर्वाचार्योंके द्वारा कभी स्वीकृत वैदिक परम्परा सम्मत अनुमानलक्षण विभाग श्रादिका खण्डन । दूसरा परिणाम यह है कि सभी वैदिक विद्वानोंके द्वारा बौद्ध सम्मत अनुमानप्रणालीका खण्डन व अपने पूर्वाचार्य सम्मत अनुमान प्रणालीका स्थापन । पर इस दूसरे परिणाममें चाहे गौण रूपसे ही सही एक बात यह भी उल्लेख योग्य दाखिल है कि मासर्वज्ञ जैसे वैदिक परम्पराके किसी १ 'अनुमानं लिङ्गादर्थदर्शनम्'-न्यायप्र० पृ०७१ न्यायवि० २. ३ । तत्त्वसं० का० १३६२ । २ प्रमाणसमु० परि० २ तत्त्वसं० का० १४४२ । तात्पर्य० पृ० १८० । ३ न्यायवा० पृ० ४६ । तात्पर्य० पृ० १८० । ४ 'साध्याविनाभुनो लिङ्गात्साध्यनिश्चायकं स्मृतम् । अनुमानम्'न्याया० ५। ५ न्यायवि० २. १७१, १७२ । ६ तत्त्वार्थश्लो० पृ० २०५ । प्रमेयक पृ० १०५ । १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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