Book Title: Anitya Bhavana
Author(s): Indradinnasuriji
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 10
________________ मदमस्त चाल को उसके नुकीलें सींगों को और उसके आंतक को। इस तरह पांच वर्ष बीत गए । सात वर्ष के बाद उस सांड का आंतक नगर में खत्म हो गया। क्योंकि वह अब बूढ़ा हो गया था। उसके लम्बे-चौड़े बलिष्ठ शरीर में अब कोई ताकत नहीं रही। उसके दृढ़ ससत्त्व पावों में अब कोई शक्ति नहीं बची। उन नुकीले सीगों में से नुकीलापन जाता रहा । उसकी मदमस्त चाल अब कंपन और अस्थिरता में बदल गई। उसके ऊपर कौवे बैठकर उसे चोंच मारने लगे। मक्खियां भिनभिनाने लगी। कुत्ते परेशान करने लगे। बैठ जाता तो उठना मुश्किल होता और उठ जाता तो चलना कठिन होता। राजा करकुंड ने उसकी यह हालत देखी और वे दु:खी हो उठे। सोचने लगे। क्या जीवन की यही वास्तविकता है? यौवन इतना अस्थिर है? देखते ही देखते यह सांड कैसे मृत्यु के निकट पहुंच गया । इस रूप, बल और प्रभाव की यही अन्तिम परिणति है ? जीवन की अगर यही वास्तविकता है, यौवन यदि इतना ही अस्थिर है, बल और रूप का अन्तिम परिणाम यही है तो मुझे सावधान हो जाना चाहिए। मुझे इस अस्थिरता में स्थिरता की साधना कर लेनी चाहिए । इस अनित्यता में नित्य की आराधना कर लेनी चाहिए। इस परिवर्तनशीलता में अपरिवर्तन की उपासना कर लेनी चाहिए। इस मेरे रूप की, मेरे बल की, मेरी युवावस्था की भी, एक दिन यही स्थिति होने वाली है। इस स्थिति के आने से पहले ही मुझे जागृत होकर इनका उपयोग अमरता की साधना के लिए कर लेना चाहिए।' यह सोचकर राजा करकुंड ने राज्य छोड़ दिया और साधना का मार्ग पकड़ लिया। यह है संसार के परिवर्तन का वास्तविक दर्शन । संसार को देखना है तो करकुंड की नजर से देखें । संसार को संसार में होने वाली घटनाओं को, परिवर्तनों को, बदलाहटों को, अस्थिरताओं को सभी देखते हैं, पर यह देखना, देखना नहीं है । वह देखना किस काम जो भीतर के बोध का कारण न बनें । वह आंखें किस काम की जो बाहरी चकाचौंध में अपनी दृष्टि खो दें । आदमी की आंखों पर बाहर के आकर्षण की मोह की, ममत्व की पट्टी बंधी हुई है, जिस के कारण वह वास्तविकता का दर्शन नहीं कर पाता। यह अनित्य भावना जब अपनी चरम सीमा को छू लेती है, तब यह मोक्ष का द्वार खटखटाने में भी सक्षम होती है। माता मरुदेवा की अनित्य भावना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। माता मरुदेवा का अपने पुत्र आदिनाथ पर असीम स्नेह और वात्सल्य था। पुत्र भरत, बाहुबली आदि को राज्यभार सौंपने के बाद उनकी इच्छा दीक्षा लेने की हुई । एक दिन प्रात: काल ४० श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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