Book Title: Anekant Rup Swarup Author(s): Rajbahadur Pandey Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 2
________________ R poto2062000 80006 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ / 90.4 दूसरे प्रकार से कहें तो वस्तु अनेकान्तिनी होती है। उसको / जन्म हुआ कि 'जियो और जीने दो' यानी तुम भी जियो और GDS देखने वाला व्यक्ति अपनी देखने की शक्ति की सीमितता के कारण। दूसरों को भी जीने दो। कवि ने कहा भी हैर उसके एक पक्ष को ही देख पाता है। किन्तु वह मान लेता है कि "विधि के बनाये जीव जेते हैं जहाँ के तहाँ, Bodo मैंने वस्तु को या व्यक्ति को अपनी आँखों से देखकर पूरी तरह खेलत-फिरत तिन्हें खेलन फिरन देउ।" जान लिया। इस प्रकार एक अन्य व्यक्ति भी उस वस्तु के एक अन्य - पक्ष को अपनी सीमित दृष्टि से देखकर यह मान बैठता है कि मैंने जीने का अधिकार तुम्हारा ही नहीं, सभी का है। यह नहीं कि 10220 अपनी आँखों के प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा उस वस्तु को पूरी तरह तुम अपने जीने के लिए दूसरों की हिंसा करो। यह तो इसलिए भी So देखकर जान लिया है किन्तु वास्तविकता तो यह है कि दोनों ने अनुचित है कि तिसे तुम दूसरा समझ रहे हो, वह दूसरा है ही वस्तु के एक-एक पक्ष को ही जाना है। नहीं। तात्त्विक दृष्टि से वह भी वही है जो कि तुम हो। फिर तुम उस अनेकान्तिनी अनेक पक्षों और अनेक धर्मों वाली वस्तु के चेतन हो या दूसरा चेतन है अथवा जड़ सब में एक ही तत्त्व की प्रधानता है2 008 अन्य कई पक्ष, अन्त और धर्म उन दोनों के द्वारा अनदेखे रह गए o हैं। किन्तु वे अपने-अपने सीमित अनुभवों के आधारों पर यह “एक तत्त्व की ही प्रधानता। PESHAPP मानकर कि हमीं सही हैं दूसरा गलत है, परस्पर झगड़ते हैं और वह जड़ हो अथवा हो चेतन॥" लोक P..90900D इसी सीमित दृष्टिकोण के कारण संसार में संघर्षों तथा हिंसा तथा इस प्रकार इस सिद्धान्त से हिंसा का निरसन एवं शान्ति, असत्य का जन्म होता है। तब अनेकान्त सिद्धान्त यह कहता है, उन अहिंसा तथा सत्य धर्म की प्रतिष्ठा होती है और अभेदवाद की दोनों संघर्ष शील व्यक्तियों से कि भय्या! इसमें संघर्ष की बात / पुष्टि होती है। सारांशतः यह सिद्धान्त सत्य भी है, शिव अर्थात् बिल्कुल है नहीं, बस इतनी सी बात है कि तुम ही सही नहीं हो। कल्याणकारक भी है और सुन्दर भी है यानी सत्यं शिवं सुन्दरं है। वास्तविकता तो यह है कि तुम भी सही हो और तुम भी सही हो, पता: DOO तथा वस्तु का दृष्टा अन्य व्यक्ति भी सही है। उत्तरायन AD इसीलिए दर्शन का यह सिद्धान्त आचार में भी सिद्धान्त या सी-२४, आनन्द विहार SED स्याद्वाद' कहलाया, और इसी सिद्धान्त से इस स्वर्णिम वाक्य का न्यू दिल्ली-११००९२ HO90030000RS Good पारन DOON की कमा जीवन की घडी अब बना सफल जीवन की घड़ी। सत्य साधना कर जीवन की जड़ी।।टेर।। नर तन दुर्लभ यह पाय गया। विषयों में क्यों तू लुभाय गया। जग जाल में फँसता ज्यों मकड़ी॥१॥ परिवार साथ नहीं आयेगा। नहीं धन भी संग में जायेगा॥ क्यों करता आशाएँ बड़ी-बड़ी॥२॥ दुष्कर्म कमाता जाता है। नहीं प्रभु के गुण को गाता है। पर मौत सामने देख खड़ी॥३॥ जग के जंजाल को छोड जरा। महावीर प्रभु को भज ले जरा॥ “मुनि पुष्कर" धर्म की जोड़ कड़ी॥४॥ -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि (पुष्कर-पीयूष से) मनाला -2009Page Navigation
1 2