Book Title: Andha Vishwas Nivaran me Nari ki Bhumika Author(s): Maya Jain Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 4
________________ शकुन और अपशकुन भी समाज में देखे जाते हैं। तीर्थंकरों की माताओं ने स्वप्न देखे थे वे शुभ शकुन थे जिनका अपना विशेष महत्व था। और वे सोलह स्वप्न धर्म निष्ठ एवं श्रुत नारी को ही दिखे। आज की नारी को भी स्वप्न दिखते हैं, पर वे सत्य से परे इसलिए हो जाते हैं कि उनमें धार्मिक क्रान्ति के बीज नहीं है। अपशकुन का बोलबाला आज भी समाज में है, बिल्ली का रास्ता काट जाना, छींक आना, आदि है। पर इन पर विचार किया जाय तो ये अपशकुन किस रूप में है, इसका किसी को पता ही नहीं है, अतः इन अंध विश्वासों को त्यागना होगा। और इन्हें समाप्त करने के लिए नारियों को आगे आना होगा। आज की सबसे बड़ी कुरीति दहेज प्रथा समाज में व्याप्त है। दहेज की बलिवेदी पर कन्यायें चढ़ा दी जाती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण धार्मिक जागृति का न होना ही कहा जा सकता है। आत्महत्या जघन्य अपराध है, पर आत्महत्या क्यों ओर किस लिए की जाती है यह तो सर्वविदित ही है। ऐसे जघन्य अपराधों को नारी ही रोक सकती है। समाज में एक सबसे बड़ा कारण जन अपवाद भी है। जन अपवाद के कारण सीता को अग्नि परीक्षा देना पड़ी और अपनी धार्मिक, क्रान्ति से तात्कालिक समाज में सैद्धान्तिक बीज बोये, रावण की पत्नी मंदोदरी ने रावण को इसलिए शिक्षा दी कि वह अपने ज्ञान के मूल्य को समझ सके तथा नारी के मातृत्व गुण उजागर कर सके। आज हमारी समाज में मिथ्या मान्यताओं का भी बोलबोला है जैसे किसी शुभ कार्य पर अपने डपदेव का स्मरण कर अन्य देवी देवताओं को पजना. मन्दिर में तीर्थंकर की प्रतिमा. वीरागत के भावों को र्शत करने वाली होती है पर व्यक्ति धनोंपार्जन की लालसा आदि को लेकर यक्ष-यक्षिणियों, पदमावती आदि दि की मर्तियों की पूजा करने लगा है। मैं यहाँ यह बात स्पष्ट कर देना चाहती हैं कि यक्ष यक्षणि पदमावती आदि श्रद्धा की पात्र तो हो सकती हैं परन्तु पूजा की पात्र नहीं। अंत में यही कहा जा सकता है कि अत्याचार, अनाचार, दुराचार, पाखण्डता, आदि को दूर करने में नारी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, क्योंकि उसके व्यावहारिक जीवन में मातृत्व गुण के अतिरिक्त पवित्रता, उदारता, सौम्यता, विनय संपन्नता, अनुशासन, आदर सम्मान, की भावना, आदि गुणों का पुट मणि कांचन की तरह होता है। (50) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4