Book Title: Anchalgacchiya Jaykesarsuri Bhas Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ अनुसन्धान ४३ ६७ सखि प्रतपउ ए अम्ह गुरु जां जगि सूर अईया प्रतपउ ए अञ्चलगच्छ नरिंद ||५|| इति श्री गुरु भास (२) कविआस प्रणीत आज घरि घरिई वधामणां, हरख लइ चतुर्विध संघ ए । आरे श्री विधिपक्ष गच्छनायक, जयवंत जयकेसरिसूरिंद रे ॥ मिलउ सहेली सुगुरु तणा गुण गाउ ए । कनक थाल मोतीडां भरि जयकेसरिसूरि वधावउ रे ॥१॥ ॥ मिलउ सहेली, आंचली ॥ जिम तारायण चांदलउ, तिम मुखि अमीय झरंतू ए । सूरि श्रीजयकेसरिसुगुरु अम्ह तरणि परि तपंतू रे ॥ २ ॥ मिलउ सहेली ।। सुललित वाणी सुणीजइ, श्रवणि अमीरस पीजइ रे । श्रीजयकेसरिसूरि तरणतारण सिरि लुंछणडां करीजइ रे ।। ३ ।। मिलउ सहेली ॥ आस भणति अईसा सुगुरु तुम्ह जयउ संघपति आसधीर तनू रे । संघपति महिपाल जयपाल, जयकेसरिसूरि प्रसन्नू रे ॥ ४ ॥ मिलउ सहेली ।। (इति) श्री गुरु भास (३) हरसूर प्रणीत ऊलट अंगि अपार कामिनि करउ सिणगार मोतीय थाल भरी वधावउजी । सही ए अम्ह सुहगुरु आईला श्रीजयकेसरिसूरी । सही ए. ॥ १ ॥ आ. । अहव सूहव आवउ माणिक चउक चूरावउ | गच्छनायक गुण गाउजी । सही ए. ॥ २ ॥ जयकित्तिसूरि पाटोधर कलि गोयम अवतार । तरणतारण पाय सेवउजी । सही ए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11