Book Title: Ananya aur Aparajey Jain Darshan
Author(s): Gyan Bharilla
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 14
________________ 270 : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय 00-0-0-0-0-0-0-0-0 दूं. फिर भी अंजन का सेवन करने वाले की दृष्टि निर्मल हो जाती है. इसी प्रकार वीतराग होने के कारण भगवान् की इच्छा नहीं होती कि मैं अपने भक्त का कल्याण करूं, तो भी उनकी भक्ति करने वाले का कल्याण अवश्य होता है. दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि, किसी कार्य का कर्ता हो या न हो परन्तु कारणों की पूर्णता होने पर कार्य की निष्पत्ति हो ही जाती है. अत: वीतराग भगवान् की भक्ति करना ही चाहिए. वह कभी निष्फल नहीं हो सकती. जनदर्शन नित्य नूतन है। जैनदर्शन सम्बन्धी अपनी इस विवेचना में हमने देखा कि इस महान् दर्शन का प्रत्येक सिद्धान्त, चाहे वह सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थ-अणु-परमाणु के विषय में हो अथवा सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान् परमात्मा तथा अनन्त और अनादि सृष्टि के विषय में, अकाट्य, तर्कयुक्त और विशिष्ट है. यही कारण है कि इस विश्व का यह दिग्विजयी दर्शन चिरनवीन नित्य-नूतन है. लाखों वर्षों से जो सिद्धांत इस दर्शन के द्वारा प्रतिपादित किये गए हैं वे आज भी जीवन के हर क्षेत्र में, जीवन की प्रत्येक समस्या के विषय में, सीधा, सच्चा और स्पष्ट समाधान प्रस्तुत करते हैं. हमने देखा कि जैनदर्शन का अनेकान्तवाद, जिसे युग-युग के पूर्व से जैन दार्शनिकों ने संसार को भेंट किया है, एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसे अन्ततोगत्वा विज्ञान ने स्वीकार किया है. उसके अतिरिक्त कोई दृष्टिकोण नहीं है जिसके आधार पर चल कर हम वस्तु, जीवन, सत्य को उसके सच्चे स्वरूप में जान सकें. हमने देखा कि जैन दर्शन ने जो आचार-पद्धति हमें बताई है, वही, केवल वही, आचार-पद्धति है जिसका पालन करने से ही आज की मानवता की, सृष्टि की रक्षा और अस्तित्व सम्भव है. यह असम्भव है कि मानव-समाज उस आचार-पद्धति को त्याग दे और त्याग कर अपना अस्तित्व कायम रख सके. हमारे जीवन की समस्त कठिनाइयाँ, हमारी समस्याएँ, हमारे दुख, सर्वनाश का भय जो हमारे द्वार तक आ पहुँचा है, यदि दूर किया जा सकता है तो केवल इसी आचार-पद्धति के अनुसरण द्वारा ही. हमने देखा कि जीवन, जगत् और जगत् की रचना के विषय में जैनदर्शन ने जो समाधान उपस्थित किए हैं, वे अकाट्य हैं और उन्हें स्वीकार किए विना हमारे पास अन्य कोई मार्ग नहीं है. इसीलिए हमें यह मानना ही पड़ेगा कि जैनदर्शन इस संसार का एक अनन्य दर्शन है. कोई अन्य दर्शन नहीं जो इसकी समता में रखा जा सके. जैनदर्शन का चिन्तन, उसके सिद्धांत किसी भी तर्क द्वारा अवास्तविक प्रमाणित नहीं किए जा सकते. ऐसा सुदृढ़, सुविचारित ठोस वैज्ञानिक दर्शन यदि इस संसार का अपराजेय दर्शन है, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं. हम अपनी ओर से यही भावना कर सकते हैं कि संसार के इस अनन्य, अपराजेय और नित्य नूतन दर्शन-जैनदर्शनका ज्ञान और अनुसरण इस विश्व के सन्मुख कल्याण का मार्ग मुक्त करे. Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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