Book Title: Anand Pravachan Part 06
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 13
________________ कहो क्यारे पछी तरशो? धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! __ आज मगनमुनि जी म० की तपश्चर्या का इकतीसवाँ दिन है। तपश्चर्या करना सहज नहीं है, यह मनुष्य के लिए सबसे कठिन कार्य है। यद्यपि तप के बारह प्रकार होते हैं और वे सभी तप कहलाते हैं किन्तु उनमें से अनशन तप करना साधक के लिए कठिन होता है क्योंकि शरीर प्रतिदिन खुराक माँगता है और उसके अभाव में वह दैनिक कार्य करने से इन्कार करने लगता है। किन्तु शरीर के विद्रोह की परवाह न करते हुए तथा इन्द्रियों की शिथिलता पर भी विजय प्राप्त करते हुए जो मुमुक्ष 'अनशन' तप जारी रखता है और अपने आत्मबल की असाधारण शक्ति का परिचय देता है वह तपस्वी सराहना के योग्य होता है । हमारे तपस्वी सन्त मगनमुनि जी ने भी अपनी दृढ आत्मशक्ति से निरन्तर इकतीस दिन का तप किया है और इससे नागपुर श्री संघ ने प्रभावित होकर इस प्रसंग पर सोल्लास जिससे जितना बन सके और जिस प्रकार बन सके, कुछ न कुछ करने का विचार किया है । उदाहरण स्वरूप अनेक भाई-बहनों ने तेले किये हैं। हमारे मुनि जी ने तो केवल इक्यावन तेलों के किये जाने की इच्छा प्रकट की थी किन्तु संघ ने इससे दुगुने करके अपने हर्ष एवं उत्साह का परिचय दिया है । ____ इसके अलावा इस अवसर पर संघ ने दान के द्वारा धनराशि इकट्ठी करते हुए अनेक लोकोपयोगी कार्य करने का भी निश्चय किया है और मनोज जी एवं गामाना जी आदि ने अभी-अभी इस विषय पर अपने विचार प्रकट किये हैं। साथ ही स्व० दानवीर सेठ सरदारमल जी पुगलिया की धर्मपत्नी श्रीमती मगनबाई ने इस कार्य में अग्रणीपद लेने की तथा अपने उदार अन्तःकरण से सहयोग देने की स्वीकृति दी है और इसी प्रकार संघ के अन्य सदस्यों ने भी अपना योगदान देने की प्रशंसनीय अभिलाषा व्यक्त की है । नागपुर क्षेत्र का यह सराहनीय एवं आदर्श व्यवहार है। ऐसा होना भी चाहिए, क्योंकि अपने परिवार के लिए तो जीवन भर आप हजारों लाखों रुपये खर्च करते रहते हैं किन्तु परोपकार के लिए उस धन का थोड़ा सा अंश भी अगर नहीं लगाया तो मनुष्य जन्म पाकर आप आगे के लिए क्या संचय करेंगे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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