Book Title: Alankar Manihar Part 04
Author(s): R Shama Shastry
Publisher: Oriental Library

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Page 15
________________ अलङ्कारमणिहारे अत्र सीतायाः श्रीरघुनन्दनविषयकसंभोगशृङ्गारस्य तद्गत. वीररसोऽङ्गम् ॥ . - यथावा इतरदुरानमपुरहरकोदण्डोद्दलनशौण्डदोर्दण्डम्। ऐक्षत सीता रघुसुतमवनतवदना विलोलतरनयना ॥ २००२ ॥ अत्रेतरसुरासुरधनुर्धरदुरासदपुराहितशरासनोहलनन विस्मयस्य स्थायिनः परिपोषादद्भुतरसः। स च श्रीरघुनन्दनविषयकजानकीगतशृङ्गाररसस्याङ्गम् ॥ . :यथावा युद्धोद्धतेन हरिणा निर्धूतं वेपमानमुप्तकचम् । अवलोक्य भीष्मकसुतं भवति स्मेराननस्स्म बलभद्रः॥ २००३ ॥ अत्र युद्धौद्धत्याभिव्यज्यमानभगवद्गतवीररसस्य वेपमानमित्याधभिव्यङ्गयरुक्मिगतभयानकरसाङ्गता। तस्य च बलभद्रगतहास्यरसागतेति विच्छित्तिविशेषः पूर्वस्मात् ॥' रसस्य भावाङ्गत्वे यथा अन्योन्याश्लिष्टाङ्गकमन्योन्यविलासविवशितान्योन्यम् । वृषगिरिकुटुम्बि मिथुनं विहरतु नस्स्वान्तनानि शुद्धान्ते ॥ २००४ ॥ अत्र कविगतदिव्यदम्पतिविषयकरतिभावस्य तद्गतङ्गाररसोशम् । यद्यपि रसभावमापन्नस्याखण्डब्रह्मनन्दसब्रह्मचारिणो

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