Book Title: Agamo ke Adhikar Ganipitak ki Shashwatta Author(s): Atmaram Maharaj Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 2
________________ जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क शतक भगवती सूत्र में अध्ययन के स्थान पर शतक का प्रयोग किया गया है। अन्य किसी आगम में शतक का प्रयोग नहीं किया। स्थान - स्थानांग सूत्र में अध्ययन के स्थान पर स्थान शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके पहले स्थान में एक-एक विषय का, दूसरे में दो-दो का यावत् दसवें में दस-दस विषयों का क्रमश: वर्णन किया गया है। 66 समवाय- समवायांग सूत्र में अध्ययन के स्थान पर समवाय का प्रयोग हुआ है, इसमें स्थानांग की तरह संक्षिप्त शैली है, किन्तु विशेषता इसमें यह है कि एक से लेकर करोड़ तक जितने विषय हैं, उनका वर्णन किया गया है। स्थानांग और समवायांग को यदि आगमों की विषयसूचि कहा जाए तो अनुचित न होगा। प्राभृत- दृष्टिवाद, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति इनमें प्राभृत का प्रयोग अध्ययन के स्थान में किया है और उद्देशक के स्थान पर प्राभृतप्राभृत । पद - प्रज्ञापना सूत्र में अध्ययन के स्थान में सूत्रकार ने पद का प्रयोग किया है, इसके ३६ पद हैं। इसमें अधिकतर द्रव्यानुयोग का वर्णन है। प्रतिपत्ति- जीवाभिगमसूत्र में अध्ययन के स्थान पर प्रतिपत्ति का प्रयोग किया हुआ है। इसका अर्थ होता है- जिनके द्वारा पदार्थो के स्वरूप को जाना जाए, उन्हें प्रतिपत्ति कहते है- प्रतिपद्यन्ते यथार्थमवगम्यन्तेऽर्था आभिरिति प्रतिपत्तयः । वक्षस्कार- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र में अध्ययन के स्थान पर वक्षस्कार का प्रयोग हुआ है। इसका मुख्य विषय भूगोल और खगोल का है। भगवान ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती का इतिहास भी वर्णित है। उद्देशक - अध्ययन शतक, पद और स्थान इनके उपभाग को उद्देशक कहते हैं। आचारांग, सूत्रकृतांग, भगवती, स्थानांग, व्यवहारसूत्र, बृहत्कल्प, निशीथ, दशवैकालिक, प्रज्ञापना सूत्र और जीवाभिगम इन सूत्रों में उद्देशकों का वर्णन मिलता है। अध्ययन - जैनागमों में अध्याय नहीं, अपितु अध्ययन का प्रयोग हुआ है और उस अध्ययन का नाम निर्देश भी । अध्ययन के नाम से ही ज्ञान हो जाता है कि इस अध्ययन में अमुक विषय का वर्णन है। यह विशेषता जैनागम के अतिरिक्त अन्य किसी शास्त्र ग्रन्थ में नहीं पाई जाती। आचारांग, सूत्रकृतांग, ज्ञाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, अन्तकृद्दशांग, अनुत्तरौपपातिक, प्रश्नव्याकरण, विपाक, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, आवश्यक और निरियावलिका आदि ५ सूत्रों तथा नन्दी- इनमें आगमकारों ने अध्ययन का प्रयोग किया है। द्वादशांग गणिपिटक क्या सदैव एक जैसे रहते हैं? द्वादशांग गणिपिटक सभी तीर्थंकरों के शासन में नियमेन पाया जाता है तो क्या उनमें विषय वर्णन एक सदश ही होता है? या विभिन्न पद्धतियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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