Book Title: Agam Suttani Satikam Part 02 Sutrakrutang
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 470
________________ [3] क्रम • वृत्ति - ८३७ १००० ४०. | आगमसूत्रनाम • मूल वृत्ति-कर्ता श्लोक प्रमाण श्लोकप्रमाण |३२. देवेन्द्रस्तव ३७५ | आनन्दसागरसूरि (संस्कृत छाया) ३७५ |३३. | मरणसमाधि ★ ८३७ आनन्दसागरसूरि (संस्कृत छाया) ३४. | निशीथ ८२१ जिनदासगणि (चूणि) २८००० सङ्घदासगणि (भाष्य) ७५०० | ३५. बृहत्कल्प ४७३ मलयगिरि+क्षेमकीर्ति ४२६०० | सङ्घदासगणि (भाष्य) ७६०० ३६. व्यवहार ३७३ मलयगिरि ३४००० सङ्घदासगणि (भाष्य) ६४०० ३७. | दशाश्रुतस्कन्ध ८९६/- ? - (चूणि) २२२५ ३८. | जीतकल्प ★ १३० सिद्धसेनगणि (चूणि) ३९. महानिशीथ ४५४८ | आवश्यक १३० हरिभद्रसूरि २२००० ४१. ओघनियुक्ति नि.१३५५ द्रोणाचार्य (?)७५०० - | पिण्डनियुक्ति है | नि. ८३५ मलयगिरिसूरि ७००० ४२. दशवैकालिक ८३५ हरिभद्रसूरि ७००० ४३. उत्तराध्ययन २००० शांतिसूरि १६००० ४४. नन्दी ७०० | मलयगिरिसूरि ७७३२ ४५. | अनुयोगद्वार २००० मलधारीहेमचन्द्रसूरि ५९०० नोंध:(१) 6. ४५ माम सूत्रीमा वर्तमान अणे पडेल १ थी ११ अंगसूत्रो, १२ थी २3 उपांगसूत्रो, २४थी33 प्रकीर्णकसूत्रो ३४थी 3८ छेदसूत्रो, ४० थी ४3 मूळसूत्रो, ४४-४५ चूलिकासूत्रोना नामेही प्रसिद्ध छे. (૨) ઉક્ત શ્લોક સંખ્યા અમે ઉપલબ્ધ માહિતી અને પૃષ્ઠ સંખ્યા આધારે નોંધેલ છે. જે કે તે સંખ્યા માટે મતાંતર તો જોવા મળે જ છે. જેમકે આચાર સૂત્રમાં ૨૫૦૦, ૨૫૫૪, ૨૫૨૫ એવા ત્રણ શ્લોક પ્રમાણ જાણવા મળેલ છે. આવો મત-ભેદ અન્ય સૂત્રોમાં પણ છે. (3) 65 वृत्ति- नोंछे ते अभे ४३८. संपाइन भुनी छे. ते सिवायनी ५९॥ वृत्ति-चूर्णि साहित्य भुद्रित अमुद्रित अवस्थामic 64 छ ०४. (४) गच्छाचार अने मरणसमाधि नविल्ये चंदावेज्झय भने वीरस्तव प्रकीर्णक भावे छ.४ मे “आगमसुत्ताणि" मां भूण ३थे भने “आमही५'म अक्षरश: ગુજરાતી અનુવાદ રૂપે આપેલ છે. તેમજ નીવેન્ડ જેના વિકલ્પ રૂપે છે એ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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