Book Title: Agam Sutra Satik 42 Dashvaikalik MoolSutra 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 15
________________ दशवैकालिक-मूलसूत्रं तु प्रतिद्वारं नियुक्तिकार एव यथाऽवसरं वक्ष्यति। तत्राधिकृतशास्त्रकर्तुः स्तवद्वारेणाद्यद्वारावयवार्थप्रतिपादनायाहनि.[१४] सेज्जभवं गणधरंजिनपडिमादंसणेन पडिबुद्धं । मनपिअरंदसकालियस्स निज्जूहगं वंदे॥ वृ.'सेज्जभव'मिति नाम 'गणधर' मिति अनुत्तरज्ञानदर्शनादिधर्मगणं धारयतीति गणधरस्तं, 'जिनप्रतिमादर्शनेन प्रतिबद्धं' तत्र रागद्वेषकषायेन्द्रियपरीषहोपसर्गादिजेतृत्वा-ज्जिनस्तस्य प्रतिमा-समावस्थापनारूपा तस्या दर्शनमिति समासः, तेन-हेतुभुतेन, किम्? - 'प्रतिबुद्ध' मिथ्यात्वाज्ञाननिद्रापगमेन सम्यक्तवविकाशंप्राप्त 'मनकपितर' मिति मनकाख्याप-त्यजनक 'दशकालिकसय' प्राग्निरूपिताक्षरार्थस्य निर्वृहकं' पूर्वगतोद्धृतार्थविरचनाकर्तारं वन्दे' स्तौमि इति गाथाक्षरार्थः॥ ___ भावार्थः कथानकादवसेयः, तच्चेदम्-एत्थ वद्धमानसामिस्स चरमतित्थगरस्स सीसो तित्थसामी सुहम्मो नाम गणधरो आसी, तस्सवि जंबूनामो, तस्सवि यपभवोत्ति, तस्सऽन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तम्मि चिंता समुप्पन्ना-को मे गणहरो होज्जत्ति?, अप्पणो गणे य संघे य सव्वओ उवओगो कओ, न दीसइ कोई अव्वोच्छित्तिकरो, ताहे गारत्थेस उवउत्तो, उवओगे कए रायगिहे सेज्जंभवं माहणं जन्नं जयमाणं पासइ, ताहे राअगिहं नगरं आगंतूणं संघाडयं वावारेइ-जनवाडगं गंतुं भिक्खट्ठा धम्मलाहेह, तत्थ तुब्भे अदिच्छाविज्जिहिह, ताहे तुब्भे भणिज्जइ-"अहो कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते' इति, तओ गया साहू अदिच्छाविया अ, तेहि भणिअं"अहो कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते', तेन य सेज्जंभवेण दारमूलेठिएणतं वयणं सुअं, ताहे सो विचितेइएए उवसंता तवस्सिणो असच्चं न वयंतित्तिकाउं अज्झावगसगासं गंतुं भणइ-किं तत्तं ?, सो भणइ-वेदाः, ताहे सो असिं कड्डिऊण भणइ-सीसं ते छिंदामि जइ मे तुमं तत्तं न कहेसि, तओ अज्झावओ भणइ-पुण्णो मम समओ, भणियमेयं वेयत्थे-परं सीसेच्छेए कहियव्वंति, संपयं कहयामि जं एत्थ तत्तं, ताहे सो तस्स पाएसु पडिओ, सो य जनवाडओवक्खेवो तस्स चेव दिनो, ताहे सो गंतूणं ते साहू गवेसमाणो गओ आयरियसगासं, आयरियं वंदित्ता साहुणो(य) भणइ-मम धम्मं कहेह, ताहे आयरिया उवउत्ता-जहा इमो सोत्ति, ताहे आयरिएहि साहुधम्मो कहिओ, संबुद्धो पव्वइओ सो, चउद्दपुव्वी जाओ। जया यसो पव्वइओ तया य तस्स गुठ्विणी महिला होत्था, तम्मि य पव्वइए लोगो निपल्लओ तंतमस्सति-जहा तरुणाए भत्ता पव्वइओ अपुत्ताए, अवि अस्थि तव किंचि पोट्टेत्ति पुच्छइ, सा भणइ-उवलक्खेमि मनगं, तओ समएण दारगो जाओ। ताहे निव्वत्तबारसाहस्स नियल्लगेहि जम्हा पुच्छिज्जंतीए मायाए से भणिअं 'मनगं'ति तम्हा मनओ से नामं कयंति । जया सो अट्टवारिसो जाओ ताहे सो मातरं पुच्छइ-को मम पिआ?, सा भणइ-तव पिआ पव्वइओ, ताहे सो दारओ न सिऊणं पिउसगासं पट्टिओ । आयरिया य तं कालं चंपाए विहरंति, सोऽवि अ दारओ चंपयमेवागओ, आयरिएण यसण्णाभूमिं गएण सो दारओ दिट्ठो, दारएण वंदिओआयरिओ, आयरियस्सयतंदारगं पिच्छंतस्स नेहो जाओ, तस्सविदारगस्स तहेव, तओ आयरिएहि पुच्छियंभो दारगा! कुतो ते आगमनंति?, सो दारगो भणइ-रायगिहाओ, आयरिएण भणियरायगिहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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