Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Aryarakshit, Punyavijay, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text ________________
चतुर्थपरिशिष्टम् [ हे० १०८ ] १. “कईहिं समएहिं लोगो भासाए निरंतरं तु होइ फुडो ।
लोगस्स य कइभाए कइभाओ होइ भासाए ॥३७८॥ चउहि समयेहिं लोगो भासाए निरंतरं तु होइ फुडो। लोगस्स य चरिमंते चरिमंतो होइ भासाए ॥३७९॥ कोई मंदपयत्तो निसिरइ सयलाई सव्वदव्वाइं । अन्नो तिव्वपयत्तो सो मुंचइ भिदिउं ताई ॥३८०॥ गंतुमसंखेजाओ अवगाहणवग्गणा अभिन्नाई । भिजंति धंसंति य संखिजे जोअणे गंतुं ॥३८१॥ भिनाई सुहुमयाए अणंतगुणवडिआइं लोगंतं । पावंति पूरयंति य भासाए निरंतरं लोगं ॥३८२॥ जइणसमुग्घायगईए केई भासंति चउहिं समएहिं । पूरइ सयलो लोगो अण्णे उण तीहिं समएहिं ॥३८३॥ पढमसमए च्चिय जओ मुक्काइं जंति छद्दिसिं ताई। बितियसमयम्मि ते च्चिय छ इंडा होति छ म्मंथा ॥३८४॥ मंथंतरेहिं तईए समये पुनेहिं पूरिओ लोगो । चउहिं समएहिं पूरइ लोगंते भासमाणस्स ॥३८५।। दिसि विठ्ठियस्स पढमोऽतिगमे ते चेव सेसया तिन्नि। विदिसि ट्ठियस्स समया पंचातिगमम्मि जं दोण्णि ॥३८६॥ चउसमयमज्झगहणे ति-पंचगहणं तुलाइमज्झस्स । जह गहणे पजंतगहणं चित्ता य सुत्तगई ॥३८७।। कत्थइ देसग्गहणं कत्थइ घेप्पंति निरवसेसाई । उक्कम-कमजुत्ताइं कारणवसओ निउत्ताई ॥३८८॥ चउसमयविग्गहे सति महल्लबंधम्मि तिसमओ जह वा। मोत्तुं ति-पंचसमये तह चउसमओ इह निबद्धो॥३८९॥ होइ असंखेजइमे भागे लोगस्स पढम-बिईएसु । भासाअसंखभागो भयणा सेसेसु समयेसु ॥३९०॥ आपूरियम्मि लोगे दोण्ह वि लोगस्स तह य भासाए । चरिमंते चरिमन्तो चरिमे समयम्मि सव्वत्थ ॥३९१॥ न समुग्घायगईए मीसयसवणं, मयं च दंडम्मि । जइ तो वि तीहिं पूरइ समएहिं जओ पराघाओ ॥३९२॥ जइणे न पराघाओ स जीवजोगो य तेण चउसमओ। हेऊ होजाहिं तहिं इच्छा कम्मं सहावो वा ॥३९३॥ खंधो वि वीससाए न पराघाओ य तेण चउसमओ। अह होज पराघाओ हविज तो सो वि तिसमइओ॥३९४॥ एगदिसमाइसमये दंडं काऊण चउहिं पूरेइ । अन्ने भणंति, तं पि य नागम-जुत्तिक्खमं होइ ॥३९५॥"
[विशेषावश्यकभा० गा० ३७८-३९५] [ हे० १०९ ] १. भवंति जे१, २ खंमू० पा१, मां० । 'सप्तप्रदेशा' इत्यत्र बहुव्रीहि समासः, अतो ‘भवति' इति सम्यक् ॥
[ हे० ११२ ] १. “पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया खंधा पएसट्ठयाए १, परमाणुपोग्गला अपदेसट्ठयाए अणंतगुणा २, संखेजपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा ३, असंखेजपदेसिया खंधा पएसट्ठयाए असंखेजगुणा ४; दव्वठ्ठपदेसट्ठयाए - सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए १, ते चेव पदेसट्ठयाए अणंतगुणा २, परमाणुपोग्गला दव्वट्ठअपदेसट्ठयाए अणंतगुणा ३, संखेजपएसिया खंधा दव्वट्ठयाए संखेजगुणा ४, ते चेव पदेसट्टयाए संखेजगुणा ५, असंखेजपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा ६, ते चेव पएसट्ठयाए असंखेजगुणा ७ ॥” इति प्रज्ञापनासूत्रे तृतीय पदे सू० ३३० ॥
[ हे० ११४ ] १. प्रदेशित्वा जे१, २ । प्रदेशिकत्वा मां० ॥ [ हे० ११५-११६ ] १. दृश्यतां [हा० ९६-९७ टि० १] ॥ २. दृश्यतां [सू० ११२] ॥ [ हे० १२२ ] १. त्युपप्रद खंसं० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540