Book Title: Agam 27 BhattaParinna Painnagsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin पतपरिन्ना - ६२ ||६३१-63 ६४1-84 ॥६५/485 ॥६६/-66 ॥६७187 (६८) ॥६८11-68 ६१-89 ॥७०||-70 (१३) मा कासितं पमायं सम्पत्ते सव्वदुक्खनासणए। जंसम्मत्तपइट्ठाई नाण-तव-विरिय-चरणाई भावाणुराय-पेमामुराय-सुगुणाणुरायरत्तोय | धप्माणुरायरतोय होसु जिनसासणे निश्चं दंसणभट्ठो पट्ठो नहु महो होइ चरणपब्यट्ठो। दंप्तणमणुपत्तस्स उ परियडणं नत्यि संसारे दसणपट्ठो भट्ठोदंसणभट्ठस्स नस्थि निव्वाणं। सिप्रति चरणरहिया दंसणरहियान सिझंति सुद्ध सम्मत्ते अविरओ वि अन्जेइ तित्ययरनाम। जह आगमेसिभद्दा हरिकुलपहु-सेणियाईया कल्लाणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता। सम्मइंसणरयणं नऽग्धइ ससुराऽसुरे लोए (६९) तेलोक्कस्स पहुत्तं लभ्रूण विपरिवडंति कालेणे। सम्मतं पुण लद्धं अक्खयसोक्खं लहइ मोक्खं __ अरिहंत-सिद्ध-चेइय-पवयण-आयरिय-सव्वसाहू । तिव्वं करेसु भत्तिं तिगरणसुद्धेण भावेणं एगा वि सा समत्या जिणमत्ती दुग्गई निवारेउं । दुलहाईलहावेउं आसिद्धिपरंपरसुहाई (७२) विज्जा विभत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य। किं पुणनिब्युइविजा सिझिहिइ अभत्तिमंतस्स (७३) तेसिं आराहणनायगाण न करिज जो नरो भति। धणियंपिउनमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ बीएण विणा सस्सं इच्छइ सो वासमभएण विना । आराहणमिच्छंतो आराहयभत्तिमकरंतो उत्तमकुलसंपत्तिं सुहनिप्पत्तिं च कुणइ जिणपत्ती। मणियारसेविजीवस्स दगुरस्सेव रायगिहे ___ आराहणापुरस्समगन्नहियओ विसुद्धलेसाओ। संसारक्खयकरणं तं मा मुखी नमोक्कार अरिहंतनमुक्कारो एक्को वि हवेज जो मरणकाले। सो जिनदोहि दिट्ठो संसारुच्चेयणसमत्थो मिठो किलिट्ठकम्मो नमो जिणाणं ति सुकयपणिहाणो। कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरोत्ति सूलिहओ ॥७१1-71 It७२ 11-72 ॥७३||-73 ७४-74 ॥७५/-75 ||७६||-76 1981-77 ॥७८11-78 For Private And Personal Use Only

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