Book Title: Aetihasik Charcha Dharmveer Lokashah Author(s): Tejsinh Gaud Publisher: Z_Jain_Divakar_Smruti_Granth_012021.pdf View full book textPage 7
________________ :५६३ : धर्मवीर लोकाशाह || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । शास्त्र-वाचन करते हुए लोंकाशाह को बोध हुआ। उन्होंने समझा कि वस्तु के नाम-रूप या द्रव्य पूजनीय नहीं हैं । पूजनीय तो वास्तव में वस्तु के सद्गुण हैं । लोकाशाह की इस परम्परा विरोधी नीति से लोगों में रोष बढ़ना सहज था। गच्छवासियों ने शक्ति भर इनका विरोध किया, पर ज्यों-ज्यों विरोध बढ़ता गया, त्यों-त्यों उनकी ख्याति व महिमा भी बढ़ती गई । जो अल्पकाल में ही देशव्यापी हो गई । गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में चारों ओर-लोंकागच्छ का प्रचार-प्रसार हो गया। लोकाशाह के मन्तव्य की उपादेयता इसी से प्रमाणित है कि अल्पतम समय में ही उनके विचारों का सर्वत्र आदर हआ।२१ लोकाशाह सम्बन्धी समाचार अनहिलपुर पाटन वाले श्रावक लखमशीभाई को मिले । लखमशीभाई उस समय के प्रतिष्ठित सत्ता-सम्पन्न तथा साधन-सम्पन्न श्रावक थे। लोकाशाह को सुधारने के विचार से वे अहमदाबाद में आये । उन्होंने लोकाशाह के साथ गम्भीरतापूर्वक बातचीत की। अन्त में उनकी भी समझ में आ गया कि लोकाशाह की बात यथार्थ है और उनका उपदेश आगम के अनुसार ही है ।२२ इसी प्रकार मूर्ति-पूजा विषयक चर्चा में भी उनकी समझ में आ गया कि मूर्तिपूजा का मूल आगमों में कहीं भी वर्णन नहीं है । इस पर जो लखमशी लोकाशाह को समझाने के लिए आये थे, वे खुद समझ गये । लोकाशाह को निर्भीकता और सत्यप्रियता ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया और वे स्वयं लोकाशाह के शिष्य बन गये । यह घटना वि० सं० १५२८ की है ।२३ श्री लखमशीभाई के शिष्यत्व स्वीकार कर लेने के कुछ समय बाद सिरोही, अरहट्टवाड़ा, पाटण और सुरत के चारों संघ यात्रा करते हुए अहमदाबाद आये । यहाँ श्री लोकाशाह के साथ चारों संघों के संघपति नागजी, दलीचन्दजी, मोतीचन्दजी और शंभुजी इन चारों प्रमुख पुरुषों ने अनेक तत्त्वचर्चाएं की। लोंकाशाह की पवित्र वाणी का उन पर इतना प्रभाव पड़ा कि संघ समूह में से ४५ पुरुष श्री लोकाशाह की प्ररूपणा के अनुसार दीक्षा लेने को तैयार हो गये। यहाँ श्री लोंकाशाह की प्ररूपणा के अनुसार दीक्षा लेने का प्रसंग भी यही प्रमाणित करता है कि वे उस समय तक स्वयं दीक्षित नहीं हए थे। गृहस्थावस्था में ही उन्होंने इन ४५ पुरुषों को प्रतिबोध दिया था। कहते हैं कि हैदराबाद की ओर विचरण करने वाले श्री ज्ञानजी मुनि को अहमदाबाद पधारने की प्रार्थना की गई। श्री मुनिराज २१ मुनिराजों के साथ अहमदाबाद पधारे। वि० सं० १५२८ वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया के दिन ४५ पुरुषों को भागवती जैन दीक्षा प्रदान की गई । स्वर्ण जयन्ती ग्रन्थ में दीक्षा प्रसंग की तिथि वैशाख शुक्ला ३ सं० १५२७ दी गई है। जबकि आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज भाणाजी आदि के मुनिव्रत धारण करने की तिथि सं० १५३१ मानते हैं। मरुधर पट्टावली के अनुसार वि० सं० १५३१ वैशाख शुक्ला तेरस को दीक्षा सम्पन्न हई ।२७ २१ श्री जैन आचार्य चरितावली, पृष्ठ ८६ २२ स्वर्ण जयन्ती ग्रन्थ, पृष्ठ ३६ २३ हमारा इतिहास, पृष्ठ ६६ २४ वही, पृष्ठ ६८ २५ वही, पृष्ठ ४० २६ श्री जैन आचार्य चरितावली, पृष्ठ ८७ २७ पट्टावली प्रबंध संग्रह, पृष्ठ २५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12