Book Title: Adhyatma Tri Path Sangraha
Author(s): Kailashchandra Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ 28 अध्यात्म त्रि-पाठ संग्रह यही अयोगी गुणस्थान तक वर्तता, महाभाग्य सुखदायक पूर्ण अबन्ध जब॥१७॥ इक परमाणु मात्र की न स्पर्शता, पूर्ण कलङ्कविहीन अडोल स्वरूप जब। शुद्ध निरञ्जन चेतन मूर्ति अनन्यमय, अगुरुलघु अमूर्त सहजपदरूप जब ॥१८॥ पूर्व प्रयोगादिक कारक के योग से, ऊर्ध्वगमन सिद्धालय में सुस्थित जब। सादि-अनन्त अनन्त समाधि सुख में, अनन्त दर्शन ज्ञान अनन्त सहित जब ॥१९॥ जो पद झलके श्री जिनवर के ज्ञान में, कह न सके पर वह भी श्री भगवान जब। उस स्वरूप को अन्य वचन से क्या कहूँ, अनुभवगोचार मात्र रहा वह ज्ञान जब ॥२०॥ यही परमपद पाने को धर ध्यान जब, शक्तिविहीन अवस्था मनरथरूप जब। तो भी निश्चय 'राजचन्द्र' के मन रहा, प्रभु आज्ञा से होऊँ वही स्वरूप जब ॥२१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34