Book Title: Adhyatma Ke Zarokhe Se
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 10 www.kobatirth.org 'जे एगे जाणेड़ ते सव्वे जाणइ' अथवा एकै साधे सब सधे' एक आत्मा को जान लेने या एक आत्मा का साध लेने पर, पहचान लेने पर सब कुछ ज्ञात सिद्ध हो जाता है । इस सूत्र को लक्ष्य में रखकर विशुद्ध अनुष्ठानों मे आगे बढ़ना चाहिए । आत्मबोध के बाद हेय, ज्ञेय और उपादेय स्पष्ट हो जाता है और इस सत्व प्रतीति से अकरणीय से सहज रूप से संबंध विच्छेद हो जाता है । प्रस्तुत लेखों का संकलन " अध्यात्म के झरोखे से" में जिन लेखों का समावेश किया है, वह अनायोजित है । मेरे मन में सहज रूप से कुछ उभरता गया, उसे मैंने उसी रूप से सहजतापूर्वक अंकित कर दिया । उद्देश्य यह नहीं है कि लेखों के माध्यम से मैं विद्वत्ता या पाण्डित्य प्रकट करूं । साधना के अन्तस्तल में जो रहस्य मैं पाता हूँ वे मुझ तक ही सीमित न रहे, यही मेरी भावना रहती है । इसी भावना के बल पर आपके हृदय की, आपके अन्तर की तहों को उघाड़ने का उपक्रम है " अध्यात्म के झरोखे से" के ये लेख । एक बात और है कि 'अध्यात्म के अंचल में' कृति एक दर्पण है । यह दर्पण कुछ भी दिखायेगा नहीं । इस में आपको ही देखना है । द्रष्टा, दृश्य और दर्शन की दीवारों को तोड़ कर दर्पण के सामने आंखें खोलिये, बस फिर वही दिखेगा, जिसको देखनें के लिए जन्मोंजन्मों से आपकी आंखें प्यासी थी । कोई भी पुस्तक, ग्रन्थ अथवा शास्त्र सहायक बन सकता है पर निर्णायक नहीं बन सकता । "अप्प दीवो भव" - अपना दीप आप स्वयं प्रज्वलित करो । “अध्यात्म के झरोखे से” स्वयं आप अपने आप से जुड़ो, अपने अन्तर हृदय में झाँको और अपना मार्ग निष्कंटक करों ऐसी भावना... अपने दिल में डूबकर पा जा तू अगर मेरा न बनता है न बन अध्यात्म के झरोखे से Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only - ―― सुरागे जिंदगी । अपना तो बन ॥ . आचार्य पद्मसागरसूरि

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