Book Title: Achelatva Sachelatva
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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________________ अचेलत्व-सचेलत्व बौद्ध-पिटकों में जगह-जगह किसी न किसी प्रसंग में 'निगंठो नातपुत्तो'' जैसे शब्द आते हैं । तथा 'निगंठा एकसाटका'२ जैसे शब्द भी आते हैं । जैन आगमों को जानने वालों के लिए उक्त शब्दों का अर्थ किसी भी तरह कठिन नहीं है। भ० महावीर ही सूत्रकृतांग जैसे प्राचीन आगमों में 'नायपुत्त' रूप से निर्दिष्ट हैं । इसी तरह आचारांग के अति प्राचीन प्रथम श्रुतस्कन्ध में अचेलक और एक वस्त्रधारी निग्रन्थ-कल्प की भी बात आती है। खुद महावीर के जीवन की चर्चा करने वाले आचारोग के नवम अध्ययन में भी महावीर के गृहाभिनिष्क्रमण का वर्णन करते हुए कहा गया है कि उन्होंने शुरू में एक वस्त्र धारण किया था पर अमुक समय के बाद उसको उन्होंने छोड़ दिया और वे अचेलक बने ।५ बौद्ध-ग्रन्थों में वर्णित 'एक शाटक निग्रन्थ' पार्श्वनाथ या महावीर की परंपरा के ही हो सकते हैं, दूसरे कोई नहीं। क्योंकि आज की तरह उस युग में तथा उससे भी पुराने युग में निग्रन्य परंपरा के अलावा भी दूसरी अवधूत आदि अनेक ऐसी परंपराएँ थीं, जिनमें नग्न और सवसन त्यागी होते थे। परन्तु जब एक शाटक के साथ 'निगंठ' विशेषण अाता है तब निःसंदेह रूप से चौद्ध ग्रन्थ निग्रन्थ परंपरा के एक शाटक का ही निर्देश करते हैं ऐसा मानना चाहिए। यहाँ विचारणीय प्रश्न यह है कि निग्रन्थ-परंपरा में अचेलत्व १. मज्झिम० सुत्त ५६ २. अंगुत्तर Vol. 3. P. 383 ३. सूत्रकृतांग १. २. ३. २२ । ४. प्राचारांग-विमोहाध्ययन ५. आचारांग अ०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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