Book Title: Acharyaji na Bar Maswada Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ सप्टेम्बर २००९ १११ || राग सामेरी ॥ मागसिर मासज आवीउ, मांडस्युं मोटा यंग रे, अम्हे वीवाह करस्युं तुम्ह तणो, द्रवि खरचस्युं मनि रंग रे, "पुरण पदार्थ ताहरइ, सुख भोगवो सुविसेस रे, वडपणि चारित्र लीजीइ, हजी अछउ तुम्हे लघु वेस रे. कुंयरजी, इम किम सुत मन वाली उ रे, विषम संयमभार रे, जसवंतजी, हजी अछउ तुम्हे कुमार रे, गुणवंतजी, सहोदरां माता इम वी(वि)नवइ रे [कुंयरजी दुहा] कर जोडी कुंयर भणइ, राचुं नही संसारी, मन वेधुं छइ माहरूं, वरवा संयम नारि ॥१॥ पोसमासि पोसीइ तन, चोला करी भोजन रे, सालणां वरनी सा(भा)तनां', जमी इहां अन रे, फूटरां' फोफल१० वावरो, रूडा नीरवासी११ तमने भावि रे, श्री साधुनइ संयोग, एहवो मिलइ को प्रस्ताविं रे, कुंयरजी दुहा - सायर जलथी अधिक पाय, अधिक आरोग्या अन्न, क्षुधा न भागी माहरी, त्रिपति१२ न पाम्युं तन ।।२।। माह मासि सीत बहली, शीतल वाइ वाय रे, सफरां१३ ते वस्त्र पहिरीइ, पहिरीइ चंग कभाय.४ रे, भइरव तणी पछेवडी१५, बेवडी उढणि बाहिर रे, तेणइ समइ श्रीसाधुनइ, परदेस करवउ विहार रे, कुंयरजी दुहा - सीत सही मि अतिघणी, नरग त्रियंच मझारि, ते दुख मिटाववा, माता नुं (तुं) अवधारि ॥३।। फागुण मास ज आवीउ, वसंतनो कलोल रे, केसुय१६ केसर छांटणां, गुलालनो झाकमझोल रे, भेला थई भोगी रमि, मन रागि गाय फाग रे, ते उपरि श्रीसाधुनइ, मनसुं न धरवो राग रे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7