Book Title: Acharya Hastimalji ki Samaj ko Den Author(s): Nilam Nahta Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 1
________________ प्राचार्य श्री की समाज को देन नीलम कुमारी नाहटा चारित्र-चूड़ामणि, इतिहास मार्तण्ड, कलिकाल सर्वज्ञ समान, पोरवालपल्लीवाल आदि अनेक जाति-उद्धारक, दक्षिण-पश्चिम देश पावनकर्ता, प्रतिपल वन्दनीय महामहिम परम श्रद्धेय श्रीमज्जैनाचार्य भगवन्त श्री हस्तीमल जी म. सा. की समाज को देन इतनी अद्वितीय, अनुपम, सर्वव्यापी और सर्वतोमुखी थी कि सीमित समय और सीमित लेख में उसे सीमाबद्ध कर सकना सम्भव नहीं है फिर भी उस ओर संकेत करने का प्रयास किया जा रहा है। आचार्य, विद्वान्, क्रियावान, त्यागी, तपस्वी, उपकारी और चमत्कारी संत तो जैन समाज में कितने ही हुए हैं, और होते रहेंगे परन्तु इन सभी एवम् अन्य अनेक गुणों का एक ही व्यक्ति में मिलना जैन समाज के इतिहास में आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. के अतिरिक्त अन्य कहीं नहीं है। अक्सर देखा गया है कि जहाँ ज्ञान है वहाँ क्रिया नहीं है, जहाँ क्रिया है वहाँ पांडित्य नहीं है, जहाँ चमत्कार है तो ऋजुता नहीं है, जहाँ ऋजुता है तो कुछ भी नहीं है, जहाँ उपकार है तो लोकेषरणा-विमुक्ति नहीं है, जहाँ लोकेषणा-विमुक्ति है तो कर्तृत्व विशाल नहीं है । परन्तु जब इतिहास का विद्यार्थी तुलनात्मक अध्ययन करता है, शोधार्थी अनुसंधान करता है तो वह चमत्कृत, आश्चर्यचकित और दंग रह जाता है इन सभी गुणों को एक ही व्यक्तित्व में पाकर । क्रिया-स्व० प्राचार्म श्री स्वयम् कठोर क्रिया के पालने वाले थे और शिष्यों, शिष्याओं से भी पागमोक्त आचरण का परिपालन करवाने में हमेशा जागरूक रहते थे, इसलिए उन्हें चारित्र-चूड़ामणि कहा जाता था। जमाने के. बहाने से शिथिलाचार लाने के विरोधी होने के साथ-साथ वे आगम और विवेक के साथ अन्ध रूढ़िवाद में संशोधन के पक्षधर भी थे। जागरण से शयन तक आपकी दिनचर्या सदा अप्रमत्त रहती थी। हमेशा आप अध्यात्म चिंतन में लीन रहते थे। मौन एवं ध्यान की साधना में सदैव संलग्न रहते थे। क्रिया के क्षेत्र में यह उनकी सबसे बड़ी देन थी। ज्ञान-आचार्य श्री ने स्वयं हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का, आगमों एवं जैन-जैनेतर दर्शनों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। जिस समय स्थानकवासी समाज में ऐसी धारणाएँ प्रचलित थीं कि जैन मुनि को पागम एवं आत्मज्ञान के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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