Book Title: Acharya Hastimalji Vachan aur Pravachan
Author(s): Mahendrasagar Prachandiya
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 5
________________ * प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. * 131 और सहज हो जाता है / इस प्रकार इन प्रवचनों की अतिरिक्त विशेषता हैप्रभाव की अन्विति / विवेच्य प्रवचनों में पार्षग्रन्थों की सूक्तियों का भी प्रचुर प्रयोग हुआ है। उन सूक्तियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जीवंत प्रायोगिक बाना पहिनाकर इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि उनकी अर्थ-सम्पदा सहज और सरल प्रतीत हो उठती है साथ ही उनकी प्रासंगिकता भी प्रमाणित हो जाती है। प्रवचनों की भाषा प्रायोगिक है। उसमें छोटे-छोटे वाक्यों, शब्द युग्मों के विरल किन्तु सरल प्रयोग अभीष्ट अर्थ-अभिप्राय को अभिव्यक्त करने में सर्वथा सक्षम हैं / प्रवाचक के चारित्रिक बातायन से शब्द, वाक्य इस प्रकार फूटते चलते हैं कि श्रोता के चंचल चित्त को एकाग्र होकर सुनने के लिए विवश कर देते हैं। मंत्रमुग्ध की नाईं प्रवचनों की शैली का अद्भुत सम्मोहन सर्वथा उल्लेखनीय है / यही दशा होती है प्रवचन-अनुवाचनकर्ता की। इस प्रकार सार में सारांश में कहा जा सकता है कि प्राचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी महाराज के प्रवचन, प्रभावक, पटुतापूर्ण तथा अर्थ-अभिप्राय से सर्वथा सम्पृक्त हैं जिनके पारायण अथवा श्रवन-मनन से प्राणी को सधने और सुधरने की बेजोड़ प्रेरणा प्राप्त होती है। -364, मंगल कलश, सर्वोदय नगर, आगरा रोड, अलीगढ़ (उ.प्र.) 000 अनुभव - मित्र अनुभव तुम सम मित्र न कोय / / टेर / / अनुभवः / / सेंण सखाई तुम सम नाहीं, अन्तस् करने जोय / / अनुभव० // 1 // सत्य धरम की गैल चलाओ, दुर्मति भुरकी धोय। अन्तर न्याय निचोकर काढ़ो, तार ज्ञान को सोय / / अनुभव० / / 2 / / त्याग, भाग, बैराग, अमर फल, बगस-बगस अब मोय / 'सुजाण' सुरत-ज्ञान मोतियन की, अनुभव लड़ियां पोय / / अनुभव० / / 3 / / -मुनि श्री सुजानमलजी म. सा. Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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