Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Saubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
Publisher: Jain Sahitya Samiti

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Page 651
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६०८ ] [आचाराग-सूत्रम् अल्पो जनो निवारयति लुषकान् दशतः । सीत्कुर्वन्ति कथं नाम श्रमणं कुर्कुराः दशन्तु ॥४॥ शब्दार्थ-तणफासे-तृणस्पर्शों को। सीयफासे=शीतस्पर्शों को । तेउफासे=उष्णस्पर्शों को। दंसमसगे य=डाँस-मच्छर के दुखों को। विरूवरूवाई नाना प्रकार के । फासाई= स्पर्शो को-दुखों को । सया समिए सदा समभावपूर्वक । अहियासए सहन करते थे ॥१॥ अह= अनन्तर । दुच्चरलाद-दुर्गम्य लाढ देश में । वजभूमि च सुमभूमि च-वज्रभूमि और शुभ्रभूमि रूप दोनों विभाग में । अचारी-विचरण किया। पंतं सिज्ज-गये बीते विषम वास-स्थान। पंताणि चेव आसणगाणि-और गये-बीते आसनों का । सेविंसु सेवन किया ॥२॥ लादेहि-लाढ देश में। तस्स-उन भगवान को । बहवे उवसग्गा=बहुत उपसर्ग सहन करने पड़े । जाणवया उस देश के रहने वाले अनायें लोग । लूसिंसु-मारते और दाँतों से काटते थे। भत्ते-आहार भी। लृहदेसिए= लूखा और सूखा मिलता था। तत्थ-वहाँ कुक्कुरा कुत्ते । हिंसिंसु-कष्ट देते। निवइंसु-काटने के लिए ऊपर पड़ते थे ॥३॥ अप्पे जणे अल्प-हजार में कोई एक आदमी । लूसणए कष्ट देते हुए । दसमाणे-काटते हुए। सुणए-कुत्तों को । निवारेइ-रोकता था । श्राहंसु=वे अनार्य भगवान् को मारते । छुच्छुकारिति=कुत्तों को छू-छू करते और चाहते कि । समणं इस साधु को। कुक्कुरा दसंतु ति=कुत्ते काट लें ॥४॥ भावार्थ--श्रमण भगवान् महावीर तृण के तीक्ष्ण स्पर्श, टण्ड, गर्मी और डांस-मच्छर के डंक आदि विविध परीपहों को समभावपूर्वक सहन करते थे । (उन दुखों से उनके चित्त में तनिक भी विचार या विकार नहीं होता था । उन दुखों से बचने तक का विचार नहीं आता था ॥१॥ वे दीर्घ तपस्व महावीर दुर्गम्य *लाढ देश के वज्रभूमि और शुभ्रभूमि नामक दोनों विभाग में विचरे थे । वहां उन रहने में लिए एकदम गये-बीते स्थान (उपद्रव युक्त खंडहर आदि) मिलते और बैठने के लिए आसन भी धू आदि से भरे हुए और विषम ही मिलते थे ।।२।। लाढदेश में विचरते हुए भगवान् को बहुत से कष्ट उठा पड़े। वहां के अनार्य लोग भगवान् को मारते और दांतों से काटने दौड़ते थे। भगवान् को वहां बड़ी का नाई से रूखा-सूग्वा आहार मिलता था। वहां के कुत्ते भगवान् को कष्ट देते और काटने के लिए ऊ गिरते थे ॥३॥ वहां के अनार्य और असंस्कारी लोगों में हजार में से कोई एक उन कष्ट देते हुए अं काटने के लिए दौड़ते हुए कुत्तों को रोकता था । शेष लोग तो कुतूहल से छु-छू करके उन कुत्तों को कार के लिए प्रेरणा करते । वे अनार्य लोग भगवान् को दण्डादि से मारते भी थ । (इन सब कष्टों को शः और समभाव से सहन करते हुए भगवान् छह मास तक वहां-अनार्य देश में विचरे ॥४॥ यह प्रदेश वर्तमान उड़ीसा प्रान्त की सीमा पर और प्राचीन सूत्र की दृष्टि से बा अथवा चेद्री देश की सीम; होना चाहिए ऐसी "प्राचीन भारतवर्ष" के लेखक की कल्पना है। अन्य प्रन्थकार इस प्रदेश को श्रावस्ती नगरी के में हिमालय बरफ के पहाड़ी प्रदेश में होना बताते हैं। इनमें सत्य क्या है सो इतिहासज्ञ विचार। For Private And Personal

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