Book Title: Achalgacchadhipati Dadashri Gautamsagarsuriji Author(s): Bhurchand Jain Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf View full book textPage 1
________________ अचलगच्छाधिपति प. पू. दादाश्री गौतमसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब -श्री भूरचन्द जैन __ जैन धर्म सदैव से ही भारत की संस्कृति की रक्षा करने में कटिबद्ध रहा है। इस धर्म की सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, ब्रह्मचर्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने में असंख्य संत महात्माओं, प्राचार्य देवों, साधु साध्वियों, यति मनियों का अनुकरणीय योगदान रहा है। इन महापुरुषों ने जैन धर्म के प्रचा अनोखी भूमिका निभाई है। इन्होंने अपनी ज्ञानगरिमा से अनेकों महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचनाकर भारत के प्राचीन साहित्य, संस्कृति, पुरातत्व, इतिहास आदि को संजोये रखने का महान कार्य किया है। साहित्य सर्जन, इतिहास की रचना के अतिरिक्त जनजन को धर्म के प्रति आस्तिक बनाने के लिये चरित्र धारण कर जन सेवा करने का प्रयास अपने आप में एक अनोखी देन रही है। अनेकों धार्मिक प्रतिष्ठानों का निर्माण करवा कर उसे धर्मप्रेमियों का केन्द्र बिन्दु बनाने और उसमें त्याग और तपस्या की आराधना कर अपने कल्याण के साथ-साथ जनमानस का कल्याण करने का अनोखा प्रयास सदैव भारतीय इतिहास के अमर पृष्ठों पर अंकित बना रहेगा। जैन धर्म के अचलगच्छ को पुनर्जीवित रखने में अचलगच्छ मुनिमंडलाग्रेसर दादाश्री गौतमसागरसूरिजी महाराज साहब की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अनेकों अधर्मी लोगों ने दादाश्री को धर्म मार्ग से पथ भ्रष्ट करने के साथ आपके साधु साध्वी समुदाय की एकता को भंग करने का अशोभनीय प्रयत्न किया। लेकिन दादाश्री की दूरदर्शिता, दृढ़ विचार कठोर परिश्रम, धर्म के प्रति कटु आस्था, संगठन शक्ति का प्रभुत्व को देखकर इन्हें एवं इनके शिष्य साधु साध्वी समुदाय को तोड़ने का सबका प्रयास एवं प्रयत्न निफष्ल ही रहा। दादाश्री के ही कारण जैन धर्म का प्रचलगच्छ आज भी जैनधर्म के प्रचार प्रसार के साथ-साथ भारतीय धार्मिक, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम बना हया है। दादाश्री गौतमसागरसूरिजी महाराज साहब का जन्म शूरवीरों, सतियों, संतों की भूमि राजस्थान के पाली नगर में वि. सं. १९२० में श्रीमाली ब्राह्मण श्री धीरमल के यहां क्षेमलदेवी की कोख से हुअा। ब्राह्मण धार्मिक संस्कारों को परिपूर्ण कर श्री धीरमल ने बालक का नाम गुलाबमल रखा। जैसा नाम वैसा ही आपका रंग रूप था। जिस प्रकार गुलाब महक देता है उसी प्रकार बालक गुलाबमल की तोतली वाणी से अमृत बरसता था। शरीर की बनावट एवं रूप सौन्दर्य को देखकर सभी, बालक गुलाबमल को प्यार से चूम लेते थे। बाल किलकारियों एवं पारिवारिक स्नेह के बीच गुलाबमल का बचपन बीत रहा था। पाँच वर्ष की उम्र होगी कि पाली-मारवाड़ ) મ શીઆર્ય કયાણાગતમ સ્મૃતિગ્રંથ HAMARPAPE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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