Book Title: Account of Jainism
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 46
________________ 46 An Account of peace." § A similar description is net with in V, 26, 27, and 28 of the same (non-Jain ) work. T $ समं कार्यशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः | संम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् १३ प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ॥ मनः संयम्य मच्चित्ता युक्त आसीत मत्परः १४ युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः ॥ शांन्ति निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति १५ Bhagavadgita ch. VI 13, 14, 15. १ कामक्रोध विमुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् ॥ अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् २६ स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः ॥ प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ २७ यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिमोक्षपरायणः ॥ विगतेच्छा भयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः २८ Bhagavadgita ch. V. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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