Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Shanta Modi
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 10
________________ 4507 ...... जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क 6. प्रत्याख्यान छठे आवश्यक का नाम प्रत्याख्यान है। इसका अर्थ है---त्याग करना। प्रत्याख्यान की रचना प्रति+आ+आख्यान इन तीनों शब्दों के संयोग से हुई है। प्रवचनसारोद्धारवृत्ति में व्याख्या करते हए लिखा है- अविरति स्वरूप प्रभृति प्रतिकूलता आ~-मर्यादया आकार--करण स्वरूपया आख्यानं -कथनं प्रत्याख्यानम्। __ अविरति और असंयम के प्रतिकूल रूप में मर्यादा के साथ प्रतिज्ञा ग्रहण करना प्रत्याख्यान है। मानव अपने मन में कई इच्छाओं का संग्रह रखता है। उन इन्छाओं पर नियंत्रण करना ही प्रत्याख्यान है। जिससे आसक्ति और तृष्णा समाप्त हो जाती है। जब तक आसक्ति बनी रहती है तब तक शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती। सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, वन्दन, प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग के द्वारा आत्मशुद्धि की जाती है। उसको दृढ़ रखने के लिये प्रत्याख्यान किये जाते हैं। अनुयोग में प्रत्याख्यान को एक नाम और दिया है “गुणधारण'। इसका तात्पर्य है कि व्रतरूपी गुणों को धारण करना। मन, वचन और काया के योगों को रोककर शुभ योगों में प्रवृत्ति केन्द्रित करना। शुभ योगों में केन्द्रित करने से इच्छाओं का निरोध होता है, तृष्णाएँ शान्त हो जाती हैं, अनेक गुणों की उपलब्धि होती है। आवश्यक नियुक्ति में भद्रबाहु स्वामी ने बताया कि तृष्णा के अंत में अनुपम उपशम भाव उत्पन्न होता है और उससे प्रत्याख्यान विशुद्ध बनता है। उपशम भाव की विशुद्धि से चारित्र धर्म प्रकट होता है चारित्र से कर्म निर्जीर्ण होते हैं। उसमें केवलज्ञान केवलदर्शन का दिव्य आलोक जगमगाने लगता है और शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है। आवश्यक सूत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण सूत्र है। उस पर सबसे अधिक व्याख्याएँ लिखी गई हैं। आगमों पर दस नियुकियाँ लिखी गयी हैं। उनमें प्रथम नियुक्ति का नाम आवश्यक नियुक्ति है। उसमें अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। अन्य नियुक्तियों को समझने के लिए आवश्यक नियुक्ति को समझना पड़ता है। अत: आवश्यक सूत्र साधक जीवन के लिये बहुत ही उपयोगी है। जिससे मनुष्य जीवन की दैनिक क्रियाओं में किस तरह पाप से बचकर धर्म के मार्ग पर अग्रसर हुआ जाय, यह प्रायोगिक विधि अपने जीवन के अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचने की सर्वश्रेष्ठ कुंजी है। अनेकानेक भव्य जीव इसकी आराधना करके इस आत्मा के अन्तिम पड़ाव पर पहुंच गए। इस जीव को जन्म-मरण से मुक्त कर लिया और अनंत सुख में लीन हो गए। -सी 26, देवनगर, टोंक रोड, जयपुर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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