Book Title: Aatma Aur Karm Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 4
________________ है, तो फिर कभी वह कर्म-बद्ध नहीं होता। क्योंकि कर्म-बन्ध के कारणभूत राग-द्वेष रूप साधनों का सर्वथा अभाव हो जाता है। जैसे बीज के सर्वथा जल जाने पर, उससे फिर अंकुर की उत्पत्ति नहीं होती, वैसे ही कर्मरूपी बीज के जल जाने पर, उससे संसार-रूप सकती है, वह प्रात्मा एक दिन कर्मों से विमुक्त भी हो सकती है। प्रश्न होता है--"कर्म-बन्धन से मुक्ति का उपाय क्या है ?" उक्त प्रश्न के समाधान में जैन-दर्शन मोक्ष एवं मुक्ति के तीन साधन एवं उपाय बताता है--सम्यक्-दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र / कहीं पर यह भी कहा गया है--"जानक्रियाभ्याम् मोक्षः" अर्थात् ज्ञान और क्रिया से मोक्ष की उपलब्धि होती है। ज्ञान और क्रिया को मोक्ष का हत् मानने का यह अर्थ नहीं है कि यहाँ सम्यक-दशन को मानने से इन्कार कर दिया। जनदर्शन के अनुसार जहाँ पर सम्यक्-ज्ञान और सम्यक्-चारित्न होता है, वहाँ पर सम्यक्-दर्शन अवश्य ही होता है। प्रागमों में दर्शन, ज्ञान और चारित्न के साथ तप को भी मोक्ष-प्राप्ति में कारण माना गया है। इस अपेक्षा से जैन-दर्शन में मोक्ष के हेतु चार भी सिद्ध होते हैं। परन्तु गंभीरता से विचार करने पर यह ज्ञात होता है, कि वास्तव में मोक्ष के हेतु तीन ही हैं-१. सम्यक्-तत्त्व-श्रद्धान, 2. सम्यक्-तत्त्व-ज्ञान और 3. सम्यक्-वीतराग- माचरण / बद्ध कर्मों से मुक्त होने हेतु साधक संवर की साधना से नवीन कर्मों के आगमन को रोक देता है और निर्जरा की साधना से पूर्व संचित कर्मों को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है। इस प्रकार साधक कर्म-बन्ध से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। वस्तुस्थिति यह है कि कर्मों के शुभ-अशुभ फलों के उपभोग-काल में साधारण व्यक्ति शुभ-फल में राग और अशुभ-फल में द्वेष करने लगता है, तो भविष्य के लिए फिर नये कर्म बान्ध लेता है। यदि साधक भोग-काल में राग-द्वेष से परे होकर तटस्थ हो जाए, तो फिर नये कर्मों का बंध नहीं होता। नये-पुराने सभी कर्मों से मुक्त होने के लिए वीतराग-भावना प्रमुख हेतु है। वीतराग-भावना नये कर्म-बन्ध को रोकने के रूप में संवर का काम करती है, पुरातन बद्ध-कर्मों को क्षय करने के रूप में निर्जरा का भी काम करती है। पन्ना समिक्खए धम्म For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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