Book Title: Aaptamimansabhasya evam Savivruttiya Laghiyastraya ke Uddharano ka Adhyayan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf

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Page 2
________________ अकलंकदेव कृत आप्तमीमांसाभाष्य... अकलंकदेव ने स्वामी समन्तभद्र कृत देवागम / आप्तमीमांसा पर भाष्य लिखा है । इसे देवागम विवृति भी कहा गया है । आठ सौ श्लोक प्रमाण होने से इसे अष्टशती भी कहते हैं । इसके देवागमभाष्य और आप्तमीमांसाभाष्य नाम भी प्रसिद्ध हैं । यह भाष्य इतना जटिल एवं दुरूह है कि बिना अष्टसहस्त्री ( विद्यानन्दिकृत व्याख्या) का सहारा लिए इसका अर्थ करना अत्यन्त कठिन है । Vol. II - 1996 विवेच्य ग्रन्थ आप्तमीमांसाभाष्य एवं लघीयस्त्रय में भी बौद्ध साहित्य के ही अधिक उद्धरण मिलते है । इससे पता चलता है कि अकलंकदेव बौद्धों के मन्तव्यों / सिद्धान्तों के प्रबल विरोधी रहे, परन्तु यह विरोध किसी दुराग्रह के कारण नहीं रहा, अपितु सिद्धान्तभेद के कारण उन्होंने अपने साहित्य में बौद्धों की पग-पग पर समीक्षा / आलोचना की है । १. आप्तमीमांसाभाष्य ( अष्टशती ) अकलंकदेव ने आप्तमीमांसाभाष्य (अष्टशती) में कुल दश उद्धरण दिये हैं । कारिका २१ के भाष्य में "नोत्पत्त्यादिः क्रियाः, क्षणिकस्य तदसंभवात् । ततोऽसिद्धो हेतु " : यह वाक्य उद्धृत किया है । इसका निर्देश स्थल नहीं मिल सका है । कारिका २१ के ही भाष्य में "ततः सूक्तम्" करके निम्नलिखित वाक्य उद्धृत किया है - यदेकान्तेन सदसद्वा तन्नोत्पत्तुमर्हति, व्योमवन्ध्यासुतवत्" । इसका स्रोत भी अभी ज्ञात नहीं हो सका है । कारिका ५३ के भाष्य में अकलंक ने "न तस्य किञ्चिद्भवति न भवत्येव केवलम्" वाक्य उद्धृत किया है" । यह वाक्य धर्मकीर्ति प्रणीत प्रमाणवार्तिक की कारिका का उत्तरार्ध भाग है। सम्पूर्ण कारिका इस प्रकार हैं । न तस्य किञ्चिद् भवति न भवत्येव केवलम् । भावे ह्येष विकल्पः स्याद् विधेर्वस्त्वनुरोधतः ॥ कारिका ७६ में “युक्त्या यन्नं घटयमुपैति तदहं दृष्ट्वाऽपि न श्रद्दधे" वाक्य उद्धृत किया है । इसका मूल स्त्रोत ज्ञात नहीं हो सका है । कारिका ८० की वृत्ति में "संहोपलम्भनियमादभेदो नीलतद्धियोः वाक्य उद्धृत है । जो प्रमाणविनिश्चय से लिया गया है । कारिका ८९ के भाष्य में " तदुक्तम्" करके निम्न कारिका उद्धृत की है । तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायाश्च तादृशः । सहायास्तादृशः सन्ति यादृशी भवितव्यता ॥ यह कारिका कहाँ से ग्रहण की गई है। इसका निर्देश - स्थल अभी ज्ञात नहीं हो सका है । कारिका संख्या १०१ के भाष्य में “तथा चोक्तम्" करके "सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य"१० सूत्र उद्धृत किया गया है । एवं कारिका संख्या १०५ के भाष्य में "मति श्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु " ११ यह सूत्र उद्धृत किया है । यह दोनों सूत्र तत्त्वार्थसूत्र से लिये गये हैं । कारिका १०६ के भाष्य में अकलंक ने निम्न वाक्य उद्धृत किया है.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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