Book Title: Aagam 04 SAMAVAY Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 8
________________ आगम (०४) प्रत सूत्रांक [8] दीप अनुक्रम [8] “समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं + वृत्ति मूलं [१] समवाय [१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०४], अंग सूत्र [०४ ] "समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः Education ++ धम्मे एगे अम्मे एगे पुणे एगे पावे एगे बंधे एगे मोक्खे एगे आसवे एगे संवरे एगा वेयणा एगा णिजरा १८ । जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते, अप्पइद्वाणे नरए एवं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते, पालए जाणविमाणे एवं जोयणसय सहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते, सव्वसिद्धे महाविमाणे एवं जोयणस्यसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते । अहानक्खते एगतारेपन्नत्ते, चित्तानक्खते एगतारेपन्नत्ते, सातिनक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते । इमीसे णं रयणप्यभाए पुढवीए अत्येगइयाणं रयाणं एवं पओिवमं ठिई पन्नता, इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए नेरइआणं उक्कोसेणं एवं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, दोचाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्त्रेणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, असुरकुमाराणं देवाणं अत्येगइयाणं एवं पलिओ मं ठिई पन्नत्ता, असुरकुमाराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं साहियं सागरोवमं ठिई पन्नता, असुरकुमारिंदवञ्जियाणं मोमिजणं देवानं अत्येगइआणं एवं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता, असंखिञ्जना साउय सन्निपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अत्येग आणं एवं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता, असंखिअवासाउयगन्भवक्कंतियसंणिमणुयाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता, वाणमंतराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता, जोइसियाणं देवाणं उक्कोसेणं एवं पलिओवमं वाससयसहस्समम्भहियं ठिई पन्नत्ता, सोहम्मे कप्पे देवाणं जहनेणं एगं पलिओ मं ठिई पन्नत्ता, सोहम्मे कप्पे देवाणं अत्येगइआणं एवं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, ईसाणे कप्पे देवाणं जहन्नेणं साइरेगं एगं पलिओ मं पन्नता, ईसाणे कप्पे देवाणं अत्थेमइयाणं एवं सागरोषमं ठिई पन्नत्ता, जे देवा सागरं सुसागरं सागरकंत भवं मणुं माणुसोत्तरं लोगद्दियं विमाणं देवत्ताए उववन्ना तेसि णं देवाणं उक्कोसे णं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, ते णं देवा For Par Lise Only ~7~

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