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________________ | ताकदीनेंत्री जी माश्रयते कारक वीरतीका इक वीरता कही। मत्र पचकदा सरवाले बेथोक की एकधी बीजे अधीश्रावकता वीरता जेतली तितली धर्ममाही घालीनेंजेस माहिधाजी ह विजुन ने जेना दाहाथी घोडाले घायतिवि हाया धौमा लेइगयाबेते तो अवरती बनें वस्ततोश्री वीतर कहा तो साधनें वा रतीब तो साधच्यादरेन धर्मा सूनें बेश्वर तिमार माही कही ततो धर्ममाही डेवडे तथा श्रात् करें जो पोसामा ही दारती बे तोपो सह यारी जो न्यो एव समो बोलथयेो ॥ २णा तथा लगतागमध्ये श्रमणनीयथाधाकर्मि गवते नाय कायनादयान दोनो जोज्योति बोलिनीच्या हा लीना है नही। हाथी घो स तक पेहेले उदे से नो में एहु उनजे कन्हें कायनी दया न हो। तेसुध्ो धर्माकिम कहे। कमे लुज माौसम ऐनी गं थे किं बधई। किंपकरेश किं जिला किंतु दचिणागीय मान्या हा कम्मे सुन मारोसम ऐनी गांथे श्रानयव छाउ सन्त्तकर्म्म पडिल सी दिलबंध बधा/लय बंधा बेचाउ पकरे रहस कालवीतीया वादी कालवीत या उपकरेशमंदाना वा तिवाणुला वाउं पकता । त्रपपदे गाउँपदेस गाउंप करेंइया कवकमंसीय बेधसायनोबंधर्शप्रा माया वेय ली जेब कर्मबंध यादी यंत्रण व दग्रदीमधे वानरत १६ संसारकं तारंजा वत्र्णुपरायट इसे केए वेजाव एवं चशन्ग्रदा कम्मे तुजमा लेप्रणुपरी यदृशगीयमा चाहा
SR No.650034
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages50
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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